22 जटाशंकर
-उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म. सा.
जटाशंकर का मन पढ़ाई में नहीं
लगता था। पिता से डरकर वह पढने के लिये बैठ ज़रूर जाता था। रात में वह पढ़ाई करता था।
परीक्षाएं सिर पर थी फिर भी चिंतित नहीं था।
सुबह ही सुबह उसके पिता ने कहा
बेटा! कल तुमने रात पढ़ाई नहीं की। क्या जल्दी सो गये?
जटाशंकर सो तो जल्दी गया था।
पर वह जानता था कि सच बोलने से डांट तो मिलेगी ही मार भी मिल सकती है। उसने असत्य का
प्रयोग करते हुए कहा नहीं पिताजी। कल तो मैं अपने कमरे में रात बारह बजे तक पढ़ता रहा
था। पिताजी ने कहा क्या कहा? रात बारह बजे तक पढ़ रहे थे लेकिन कल रात को लाईट 10 बजे
ही चली गई थी। सुनकर जटाशंकर घबराया।
उसने तुरंत जबाब देते हुए कहा
क्या बताउं पिताजी! कल मैं पढ़ाई में इतना लीन हो गया था कि लाइट कब चली गई, मुझे पता
ही नहीं चला।
प्रत्युत्तर उसके भोलेपन को भी
अभिव्यक्त कर रहा था और उसकी असत्यता को भी।
एक झूठ को छिपाने के लिए दूसरे
झूठ का आश्रय लेना होता है पर जरूरी नहीं कि दूसरा झूठ पहले झूठ को छिपा ही देगा। सच तो यही है कि सच बहुत जल्दी
प्रकट हो जाता है।
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