शनिवार, 1 सितंबर 2012

50. जटाशंकर -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म.सा

जटाशंकर परेशान था। उसकी स्मरण शक्ति बहुत कमजोर थी। इस कारण रोज उसे फटकार सुननी पडती थी। जो वस्तुऐं मंगवाई जाती, वह तो लाता नहीं था। और कई बार तो ऐसा होता था कि एक ही वस्तु को बार बार ले आता था। वह यह भूल जाता था कि यह तो मैं पहले ला चुका हूँ।
अपनी समस्या से वह बहुत परेशान था। आखिर वह थक हार कर एक बार एक सुप्रसिद्ध डॉक्टर के पास पहुँचा।
उसने निवेदन भरे स्वरों में कहा- डॉक्टर साहब! मेरी समस्या शारीरिक नहीं है। मैं बहुत जल्दी हर बात भूल जाता हूँ। याद नहीं रहता। आप कोई ऐसी दवा दीजिये ताकि मेरी स्मरण शक्ति तीव्र हो जाय।
डॉक्टर ने कहा- चिंता न करो। अभी अभी पन्द्रह दिन पहले ही अमेरिका में जोरदार शोध हुई है, एक ताकतवर दवा तैयार हुई है। वह दवा एक सप्ताह में केवल एक बार खानी होगी। उस दवा का असर एक सप्ताह तक कायम रहेगा। स्मरण शक्ति जोरदार हो जायेगी। बिल्कुल अनुभव की गई दवा है।
मेरे पास तीन दिन पहले ही वह दवा आई है।
जटाशंकर बहुत प्रसन्न हुआ। उसने कहा- डॉक्टर साहब! पैसा कितना भी लगे, चिन्ता नहीं, पर दवा कारगर होनी चाहिये।
डॉक्टर ने कहा- एक काम करो, कल इसी समय आ जाना। मैं तुम्हें दवा दे दूंगा।
जटाशंकर ने कहा- डॉक्टर साहब! कल आना भूल गया तो! इसलिये एक काम करो। पैसे मैं साथ लेकर आया हूँ। वह दवा आप आज ही मुझे दे दीजिये।
डाँक्टर ने कहा- नहीं! आज मैं तुम्हें नहीं दे सकता।
क्यों! आज क्यों नहीं!’ जटाशंकर ने तर्क किया।
डॉक्टर ने कहा- नहीं! और कोई बात नहीं है। असल में वह दवा रखकर मैं जरा भूल गया हूँ। मुझे याद नहीं है कि वह दवा कहाँ रखी है? इसलिये मैं कल तुम्हें बुला रहा हूँ। ढूंढकर कल दवा तैयार रखूंगा।
यह सुनते ही जटाशंकर ने रवाना होने में ही लाभ समझा।
जो डॉक्टर खुद अपना इलाज न कर सका, वह दूसरों का इलाज क्या करेगा? इस दुनिया में हम दूसरों का ही तो इलाज करते हैं। अपने बारे में तो सोचने का वक्त ही नहीं मिलता।

45. जटाशंकर -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म.सा


जटाशंकर सिगरेट बहुत पीता था। उसकी पत्नी उसे बहुत समझाती थी। सिगरेट पीने से केंसर जैसी बीमारी हो जाती है! फेफडे गल जाते हैं! घर में थोडा धूआँ फैल जाय तो दीवार कितनी काली हो जाती है! फिर सिगरेट का धुआँ अपने पेट में डालने पर हमारा आन्तरिक शरीर कितना काला हो जाता होगा! धूऐं की वह जमी हुई परत मौत का कारण हो सकती है। इसलिये आपको सिगरेट बिल्कुल नहीं पीनी चाहिये।
एक दिन जटाशंकर की पत्नी अखबार पढ रही थी। उसमें सिगरेट से होने वाले नुकसानों की विस्तार से व्याख्या की गई थी। वह दौडी दौडी अपने पति के पास गई और हर्षित होती हुई कहने लगी- देखो! अखबार में क्या लिखा है? सिगरेट पीने से कितना नुकसान होता है?
जटाशंकर ने अखबार हाथ में लेते हुए कहा- कहाँ लिखा है! जरा देखूं तो सही!
उसने अखबार पढा! पत्नी सामने खडी उसके चेहरे के उतार चढाव देखती रही!
कुछ ही पलों के बाद जटाशंकर जोर से चिल्लाया- आज से बिल्कुल बंद! कल से बिल्कुल नहीं!
पत्नी अत्यन्त हर्षित होती हुई बोली- क्या कहा! कल से सिगरेट पीना बिल्कुल बंद! अरे वाह! मजा आ गया।
जटाशंकर चिल्लाते हुए बोला- अरी बेवकूफ! सिगरेट बंद का किसने कहा! मैं अखबार बंद करने का कह रहा हूँ!
सिगरेट के विरोध में ऐसा छापते हैं! ऐसे अखबार को हरगिज नहीं मंगाना है। न तुम पढोगी, न तुम मुझे बंद करने के लिये कहोगी!
अखबार बंद करने से सिगरेट की खराबी छिप नहीं जाती। विकारों को ही देशनिकाला देना होता है। यही जिन्दगी का सम्यक् परिवर्तन है।