रविवार, 29 जुलाई 2012

35 जटाशंकर -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म. सा.

35 जटाशंकर      -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी . सा.

जटाशंकर की माता सामायिक कर रही थी। दरवाजे के ठीक सामने ही उसने अपना आसन लगाया था। सामायिक लेकर वह माला हाथ में लेकर बैठ गयी थी। उसकी बहू पानी लेने के लिये कुएं पर जाने की तैयारी कर रही थी। तब नल घरों में लगे नहीं थे। बहूजी ने घडा हाथ में लिया... इंडाणी भी ले ली..। पर बहुत खोजने पर भी उसे पानी छानने के लिये गरणा नहीं मिला। उसने इधर से उधर पूरा कमरा छान मारा... पर गरणा नहीं मिला।
सासुजी सामायिक में माला फेरते फेरते भी बहू को देख रही थी। वह समझ गयी थी कि बहू को गरणा नहीं मिला है। सासुजी को सामने ही गरणा नजर आ रहा था। पर बहू को नहीं दीख रहा था। सासुजी ने माला फेरते फेरते हूं हूं करते हुए कई बार इशारा किया। पर बहूजी समझ नहीं पाई।
इशारा करते सासुजी को बहूजी ने देखा तो आखिर परेशान होकर कह ही दिया कि मांजी! अब आप बताही दो कि गरणा कहाँ रखा है? मुझे देर हो जायेगी पानी लाने में... फिर दिन भर के हर काम में देर होती ही रहेगी।
सासुजी साधु संतों के प्रवचनों में जाने वाली थी। वह जानती थी कि सामायिक में सांसारिक वार्तालाप किया नहीं जाता। धार्मिक शब्दों का ही उच्चारण किया जा सकता है। अब गरणा मेरे सामने पडा है, पर बहू को बताउँ कैसे?
आखिर उसने युक्ति काम में ली। उसने एक पद्य की रचना की। वह जोर से बोलने लगी!
अरिहंत देव को शरणो।
खूंटी पर पड्यो है गरणो!
अरिहंत परमत्मा का नाम लेकर अपने धार्मिक मन को संतोष भी दे दिया और गरणे का स्थान बताकर बहू का समाधान भी कर लिया।
यह गली निकालने वाली बात है। यह धार्मिक प्रवृत्ति नहीं कही जा सकती। हम गलियाँ निकालने में माहिर है पर इससे मूल सिद्धांतों के साथ धोखा कर बैठते हैं।

34 जटाशंकर -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म. सा.

34 जटाशंकर   -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी . सा.
जटाशंकर ठग था। ठगी करके अपना गुजारा चलाता था। वह घी बेचने का काम करता था। एक दिन उसे रास्ते घटाशंकर मिल गया। जटाशंकर ने सोचा- मैं इसे पटा लूं और घी बेच दूं। उसे पता नहीं था कि घटाशंकर भी पहुँचा हुआ ठग है। वह भी यह विचार कर रहा था कि जटाशंकर को पटा कर इसे सोने की अंगूठी बेच दूं।
जटाशंकर ने घटाशंकर से और घटाशंकर ने जटाशंकर से परिचय साधा। दोनों आपस में बात करने लगे। घटाशंकर ने पूछा- भैया! क्या हाल चाल है?
जटाशंकर ने जवाब दिया- बहुत मुश्किल काम हो रहा है। जब से डालडा लोग खाने लगे हैं, असली घी को तो कोई पूछता ही नहीं है। मैं सुबह से घूम रहा हूँ गाय का घी लेकर... पर कोई खरीददार नहीं मिला। देखो, कितना सुगंधदार, शानदार, दानेदार घी है! यों कहकर थोडा-सा घी घटाशंकर की अंगुली पर धरा।
घटाशंकर बोला- मेरा भी यही हाल है। मैं सोने के आभूषण बेचता हूँ! पर सत्यानाश हो इन नकली आभूषणों का! जब से नकली आभूषण बाजार में आये हैं, लोग वही पहनने लगे हैं। असली सोने के आभूषणों को कोई हाथ भी नहीं लगाता। देखो, कितना सुन्दर यह आभूषण है। यह कहकर उसे सोने की अंगूठी दिखाई।
दोनों ने एक दूसरे को पटाना प्रारंभ किया। घटाशंकर ने जटाशंकर से घी खरीद लिया। और जटाशंकर ने घटाशंकर से अंगूठी!
दोनों अपने मन में बडे राजी हुए। सोचते थे अपने मन में कि मैंने उसे ठगा।
घर जाने के बाद जब घटाशंकर ने घी का डिब्बा दूसरे डिब्बे में खाली किया तो पाया उपर दो अंगुल ही घी था, उसके नीचे तो पानी भरा था।
जटाशंकर ने सोने के अंगूठी को जब किसी सुनार को दिखाई तो पता लगा कि अंगूठी तो पीतल की है, उपर सोने का मात्र धूआं है।
दोनों चिल्लाने लगे कि मुझे ठग लिया है।
यह दुनिया ऐसी ही है। हम सोचते हैं कि मैंने ठगा, पर हकीकत है कि हम ठगे गये। यहाँ हर व्यक्ति एक दूसरे को ठग रहा है। और राजी हो रहा है। सत्य की आँख खुले तो जिंदगी बदल जाये।

शनिवार, 28 जुलाई 2012

33. जटाशंकर उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म.सा.

33. जटाशंकर  उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म.सा.

 जटाशंकर पढाई कर रहा था। पढाई में मन उसका और बच्चों की भाँति कम ही लगता था। पिताजी बहुत परेशान रहते थे। बहुत बार डाँटते भी थे। पर वांछित परिणाम आया नहीं था। वह बहाना बनाने में होशियार था।
आखिर पिताजी ने तय कर लिया कि वे अब उसे डांटेंगे नहीं, बल्कि प्रेम से समझायेंगे।
उन्होंने अपने बच्चे को अपने पास बिठाकर तरह तरह से समझाया कि बेटा! यही उम्र है पढाई की! मूर्ख व्यक्ति की कोई कीमत नहीं होती।
दूसरे दिन उन्होंने देखा कि बेटा पढ तो रहा है। पर कमर पर उसने रस्सी बांध रखी है।
यह देखकर पिताजी बडे हैरान हुए।
उन्होंने पूछा- जटाशंकर! यह तुमने रस्सी क्यों बाँध रखी है?
-अरे पिताजी! यह तो मैं आपकी आज्ञा का पालन कर रहा हूँ।
-अरे! मैंने कब कहा था कि रस्सी बांधनी चाहिये!
-वाह पिताजी! कल ही आपने मुझे कहा था कि बेटा! अब खेलकूद की बात छोड और कमर कस कर पढाई कर!
सो पिताजी कमर कसने के लिये रस्सी तो बांधनी पडेगी न!
पिताजी ने अपना माथा पीट लिया।
शब्द वही है, पर समझ तो हमारी अपनी ही काम आती है। कहा कुछ जाता है, समझा कुछ जाता है, किया कुछ जाता है! ऐसा जहाँ होता है, वहाँ जिंदगी दुरूह और कपट पूर्ण हो जाती है। मात्र शब्दों को नहीं पकडना है... भावों की गहराई के साथ तालमेल बिठाना है।

शुक्रवार, 27 जुलाई 2012

32 जटाशंकर -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म. सा.

32 जटाशंकर       -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी . सा.

जटाशंकर सेना में ड्राइवर था। घुमावदार पहाड़ी रास्ते में एक दिन वह ट्रक चला रहा था कि उसकी गाड़ी खाई में गिर पडी। वह तो किसी तरह कूद कर बच गया परन्तु गाडी में रखा सारा सामान जल कर नष्ट हो गया।
सेना ने जब इस घटना की जाँच की तो सबसे पहले जटाशंकर से पूछा गया कि तुम सारी स्थिति का वर्णन करो कि यह दुर्घटना कैसे हुई।
जटाशंकर हाथ जोड कर कहने लगा- अजी! मैं गाड़ी चला रहा था। रास्ते में मोड बहुत थे। गाड़ी को पहले दांये मोडा कि बांये हाथ को मोड आ गया। मैंने गाडी को फिर बांये मोडा। फिर दांये मोड आ गया। मैंने दांयी ओर गाडी को काटा। कि फिर बांयी ओर मोड आ गया, मैंने फिर गाडी को बांयी ओर मोडा। दांये मोड, फिर बांये मोड, फिर दांये मोड, फिर बांये मोड, ऐसे दांये से बांये और बांये से दांये मोड आते गये, मैं गाडी को मोडता रहा! मैं गाडी को मोडता रहा और मोड आते रहे। मोड आते रहे... मैं मोडता रहा! मैं मोडता रहा... मोड आते रहे।
एक बार क्या हुआ जी कि मैंने तो गाडी को मोड दिया पर मोड आया ही नहीं! बस गाडी में खड्ढे में जा गिरी!
यह अचेतन मन की प्रक्रिया है। हम बहुत बार अभ्यस्त हो जाते हैं। और जिसमें अभ्यस्त हो जाते हैं, उस पर से ध्यान हट जाता है। फिर मशीन की तरह हाथ काम करते हैं, दिमाग भी मशीन की तरह काम करने लग जाता है। फिर मोड आये कि नहीं आये... गाडी को दांये बांये मोडने के लिये हाथ अभ्यस्त हो जाते हैं। हम अपने जीवन को इसी तरह जीते हैं। हर कदम उठने से पहले उस कदम के परिणामों का चिंतन जरूरी है, यही जागरूकता है।

गुरुवार, 26 जुलाई 2012

31. जटाशंकर -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म. सा.

31. जटाशंकर         -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी . सा.

मिस्टर जटाशंकर का व्यापार चल नहीं रहा था। कोई युक्ति समझ में आ नहीं रही थी। क्या करूँ कि मैं अतिशीघ्र करोड़पति बन जाऊँ! आखिर उसने अपना दिमाग लडाकर एक ठगी का कार्य करना प्रारंभ किया। बाबा का रूप धार लिया। बोलने में तो उस्ताद था ही। उसने स्वर्ग के टिकट बेचने प्रारंभ कर दिये। उसने वचन दिया सभी को कि जो भी इस टिकिट को खरीदेगा, उसे निश्चित रूप से स्वर्ग ही मिलेगा, भले उसने जिन्दगी में कितने ही पाप किये हों... न केवल पूर्व के किये गये पाप नष्ट हो जायेंगे बल्कि भविष्य में होने वाले पापों की सजा भी नहीं भुगतनी होगी। बस केवल एक टिकिट खरीदना होगा और मरते समय उसे यह टिकिट अपनी छाती पर रखना होगा।
लोगों को तो आनंद आ गया। मात्र 5000 रूपये में स्वर्ग का रिजर्वेशन! और क्या चाहिये! फिर पाप करने की छूट! लोगों में तो टिकिट खरीदने के लिये अफरातफरी मच गई। हजारों टिकट बिक गये।
बहुत बडी राशि एकत्र कर वह अपने आश्रम लौट रहा था।
उसकी कार फर्राटे भरती हुई दौड रही थी। जटाशंकर अतिप्रसन्न था कि मेरा आइडिया कितना सफल रहा। रूपये उसने बडे बडे बैगों में भरकर कार की डिक्की में रखवा दिये थे। घर जल्दी पहुँचने के भाव थे।
रास्ता थोडा टेढा था। बीच में जंगल भी था। घुमावदार रास्ते में उसकी गाडी तेजी से दौड रही थी। कि अचानक सामने एक मोड पर बीच रास्ते पर कुछ बडे बडे पत्थर पडे दिखाई दिये।
ड्राईवर को गाडी रोकनी पडी। अचानक चारों ओर से बंदूक और पिस्तौल ताने लोग कार पर हमला करने लगे। उन डाकुओं के सरदार ने बाबा जटाशंकर के पास जाकर उसकी गर्दन से पिस्तौल लगा कर कहा- बाबा! रूपयों के बैग जल्दी से मेरे हवाले कर दो। बहुत पैसा एकत्र किया है तुमने!
बाबा जटाशंकर घबराते हुए बोला- अरे! एक संत को तुम लूट रहे हो... तुम्हें खतरनाक दंड भोगना पडेगा। नरक मिलेगी नरक!
सरदार ने कहा- बाबा! उसकी तुम चिंता न करो! मैं नरक में जाने वाला नहीं हूँ! क्योंकि मैंने स्वर्ग का टिकट खरीद लिया है। आपने ही तो कहा था- भविष्य में कुछ भी पाप करो... तुम्हें स्वर्ग ही मिलेगा!
इसलिये बाबा! आप तो जल्दी से सारी राशि मेरे हवाले करो।
बाबा जटाशंकर अपनी ही बातों में फँस गया था।
स्वर्ग कोई और नहीं दे सकता। कोई टिकट नहीं होता! हम स्वयं ही अपना स्वर्ग या नरक तय करते हैं। हमारा आचरण ही हमें स्वर्ग या नरक ले जाता है।

मंगलवार, 24 जुलाई 2012

30 जटाशंकर -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म. सा.

30 जटाशंकर     -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी . सा.
जटाशंकर रोज अपने घर के पिछवाडे जाकर परमात्मा से हाथ जोड कर प्रार्थना करता- हे भगवान! कुछ चमत्कार दिखाओ! मैं रोज तुम्हारी पूजा करता हूँ! नाम जपता हूँ। फिर इतना दुखी क्यों हूँ!
भगवन् मुझे कुछ नहीं चाहिये। बस! थोडे बहुत रूपये चाहिये। कभी कृपा करो भगवन्! ज्यादा नहीं बस सौ रूपये भेज दो! कहीं से भेजो! आकाश से बरसाओ चाहे... पेड पर लटकाओ! मगर भेजो जरूर! रोज रोज नहीं, तो कम से कम एक बार तो भेजो! और भगवन् ध्यान रखना! मैं अपनी आन बान का पक्का आदमी हूँ। पूरे सौ भेजना! ज्यादा मुझे नहीं चाहिये। एक भी ज्यादा हुआ तो भी मैं नहीं रखूंगा। एक भी कम हुआ, तब भी नहीं रखूंगा। जहाँ से रूपया आयेगा, उसी दिशा में वापस भेज दूंगा। मगर कृपा करो! एक बार सौ रूपये बरसा दो भगवन्!
पडौस में रहने वाला घटाशंकर रोज उसकी यह प्रार्थना सुनता था। उसने सोचा- चलो.. इसकी एक बार परीक्षा कर ही लें। देखें... यह क्या करता है।
उसने हँसी मज़ाक में एक थैली में 99 रूपये के सिक्के डाले और शाम को जब जटाशंकर आँख बंद कर प्रार्थना कर रहा था तब उसने दीवार के पास छिप कर निन्याणवें रूपये की वह थैली उसके हाथ में फेंक दी।
थैली का वजन भांप कर तुरंत जटाशंकर ने अपनी आँखें खोली। इधर उधर देखा.. कोई नजर नहीं आया। नजर कोई कहाँ से आता क्योंकि घटाशंकर तो थैली फेंक कर छिप गया था। वह छिप कर सब देख रहा था।
जटाशंकर तो थैली पाकर फूला नहीं समा रहा था। उसने सोचा- अहा! भगवान ने मेरी प्रार्थना सुन ली। मैं रोज मांगता था.. आज मेरी मांग लगता है पूरी हो गई है। भगवान के प्रति उसकी श्रद्धा बढ गई।
उसने बुदबुदाते हुए कहा- लेकिन भगवान! आपको मेरी शर्त याद है न! पूरे सौ होने चाहिये। एक भी कम नहीं! एक भी ज्यादा नहीं! कम-ज्यादा हुए तो वापस लौटा दूंगा।
जटाशंकर ने वहीं बैठकर थैली खोलकर रूपये गिनने शुरू किये! रूपये 99 निकले। उसका चेहरा उतर गया।
दीवार की ओट में छिपा घटाशंकर सोच रहा था कि अब 99 ही है... थैली फेंक वापस जल्दी से!
जटाशंकर ने दुबारा गिनना शुरू किया- शायद पहले मेरी गणना में भूल हो गई हो। लेकिन दुबारा भी 99 ही निकले। अब 99 ही थे। सौ थे ही नहीं तो एक बार गिनो चाहे पचास बार गिनो... 99 कभी भी सौ नहीं हो सकते।
जटाशंकर बहुत विचार में पड गया। उसने सोचा- भगवान की गणना में भूल कैसे हो सकती है। मैंने 100 मांगे थे..तो 99 कैसे निकले! अब क्या करूँ! यह थैली मुझे वापस फेंकनी पडेगी। यह तो ठीक नहीं हुआ। पैसा पाने के बाद वापस खोना पडेगा। वह काफी देर तक थैली हाथ में लेकर बैठा रहा... सोचता रहा...बार बार पैसे रगड रगड कर गिनता रहा!
घटाशंकर दीवार के उस पार देख देख कर मुस्कुरा भी रहा था और थैली का इंतजार भी कर रहा था। वह मन ही मन जटाशंकर को कह रहा था- भैया! कितनी ही बार गिन ले- 99 ही है। क्योंकि यह थैली कोई भगवान ने नहीं भेजी, बल्कि मैंने भेजी है। अब तूं जल्दी अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार वापस फेंक! ताकि मुझे मेरी थैली मिले और काम पे लगूं! लेकिन वह चिन्ता भी कर रहा था कि कहीं ऐसा न हो कि यह प्रतिज्ञा भूल जाय और थैली रख ले... मुझे सौ रूपयों का नुकसान हो जायेगा।
वह आँखें फाड कर देख रहा था।
जटाशंकर विचार करते करते अचानक राजी होते हुए बोला- अरे.. वाह भगवान! तुम भी क्या खूब हो.. पक्के बनिये हो। भेजे तो तुमने पूरे सौ रूपये! परंतु एक रुपया थैली का काटकर 99 रूपये रोकड भेज दिये! वाह भगवान वाह!
घटाशंकर ने अपना माथा पीट लिया।
सांसारिक स्वार्थ के लिये तर्क करना हम बहुत अच्छी तरह जानते हैं! परन्तु अपनी बुद्धि का प्रयोग स्वयं के लिये अर्थात् अपनी आत्मा के लिये नहीं करते।

29 जटाशंकर -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म. सा.

29 जटाशंकर          -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी . सा.
जटाशंकर की पत्नी ने अपने पति से कहा- लगता है! हमारा नौकर चोर है। हमें सावधान रहना होगा। जटाशंकर ने कहा- नौकर यदि चोर है तो उसकी छुट्टी कर देनी चाहिये।
ऐसे चोर का हमारे घर क्या काम? लगता है, इसके माता पिता ने इसे सुसंस्कार नहीं दिये।
लेकिन तुमने कैसे जाना कि वह चोर है। क्या चुराया उसने!
पत्नी ने कहा- अरे! अपने पाँच दिन पहले अपने मित्र द्वारा आयोजित भोजन समारंभ में गये थे न! वहाँ से दो चांदी के चम्मच अपन उठा कर नहीं लाये थे। वे चम्मच आज मिल नहीं रहे हैं। हो न हो! इसी ने चुराये होंगे। कैसा खराब आदमी है, चोरी करता है!
खुद ने चम्मच चोरी करके अपने झोले में डाले थे। अपनी यह चोर वृत्ति आनंद दे रही थी। कोई और चोरी करता है, दर्द होता है।
जीवन में हम इसी तरह का मुखौटा लगा कर जीते हैं। दूसरों की छोटी-सी विकृति पर बडा उपदेश देना बहुत आसान है। अपनी बडी विकृति पर दो आँसू बहाने बहुत मुश्किल है।

28 जटाशंकर -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म. सा.

28 जटाशंकर       -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी . सा.

पंडित घटाशंकर और ड्राइवर जटाशंकर स्वर्गवासी हुए। स्वर्ग और नरक का निर्णय करने वाले चित्रगुप्त के पास उन दोनों की आत्माऐं एक साथ पहुँची।
चित्रगुप्त अपने चौपडे लेकर उन दोनों के अच्छे बुरे कामों की सूची देखने लगे ताकि उन्हें नरक भेजा जाय या स्वर्ग, इसका निर्णय हो सके।
लेकिन चौपडों में इन दोनों जीवों का नाम ही नहीं था। चौपडा संभवत: बदल गया था। या फिर क्लर्क ने इधर उधर रख दिया था।
आखिर चित्रगुप्त ने उन दोनों से ही पूछना प्रारंभ किया कि तुमने काम क्या किये है, इस जन्म में! अच्छे या बुरे जो भी कार्य तुम्हारे द्वारा हुए हो, हमको बता दें। उसे सुन कर हम आपकी स्वर्ग या नरक गति का निर्णय कर सकेंगे।
पंडितजी ने कहना प्रारंभ किया- मैंने जीवन भर भगवान राम और कृष्ण की कथाऐं सुनाई है। सत्संग रचा है। मेरे कारण हजारों लोगों ने राम का नाम लिया है। इसलिये मेरा निवेदन है कि मुझे स्वर्ग ही भेजा जाना चाहिये।
वाहन चालक ने अपना निवेदन करते हुए कहा- मुझे भी स्वर्ग ही मिलना चाहिये। क्योंकि मेरे कारण भी लोगों ने लाखों बार राम का नाम लिया है।
पंडितजी ने कहा- वो कैसे ? राम का नाम तो मेरे कारण लोगों ने लिया है।
वाहन चालक ने कहा- पंडितजी! आपके कारण लोगों ने राम का नाम नहीं लिया है। राम का नाम तो मेरे कारण लिया है।
पंडितजी ने अपनी आँखें तरेरी!
वाहन चालक ने कहा- आप जब राम कथा करते थे तो अधिकतर लोग नींद लेते थे तो कहाँ से राम का नाम लेते। लेकिन मैं जब शराब पीकर डेढसौ की तीव्र गति से बस चलाता था तो सारे लोग आँख बंद कर मारे डर के राम का नाम लेना शुरू कर देते थे। जब तक बस नहीं रूकती, राम का नाम लेते ही रहते थे।
इसलिये हजूर! मैंने अपने जीवन में यह सबसे बडा कार्य किया है कि हजारों, लाखों लोगों को राम का नाम याद दिला देता था। इसलिये मुझे स्वर्ग ही मिलना चाहिये।
लोगों की दृष्टि बडी अजीब होती है। अपनी गलती होने पर भी मुस्कुराकर गलती न होने का अहसास दिलाते हैं और उसे भी दूसरों के लिये उपकारी बता कर प्रपंच रचते हैं। विकृत आचरण होने पर भी स्वर्ग की याचना करना, अपने साथ प्रवंचना करना है।

27 जटाशंकर -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म. सा.

27 जटाशंकर      -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी . सा.
10 वर्षीय जटाशंकर एक बगीचे में घुस आया था। बगीचे के बाहर प्रवेश निषिद्ध का बोर्ड लगा था। फिर भी वह उसे नजर अंदाज करके एक पेड के नीचे खडे होकर फल बटोर रहा था। उसने बहुत सावधानी बरती थी कि चौकीदार कहीं उधर न आ जाये।
हाँलाकि उसने पहले काफी ध्यान दिया था कि चौकीदार वहाँ है या नहीं! आता है तो कब आता है... कब जाता है।
दीवार फाँद कर वह उतर तो गया था, पर कुछ ही देर बाद चौकीदार वहाँ आ गया था। उसने जटाशंकर को जब फल एकत्र करते देखा तो चौकीदार ने अपना डंडा घुमाया और जोर से चिल्लाया- क्या कर रहे हो? फल तोडते शर्म नहीं आती!
जटाशंकर घबराते हुए बोला- नही हुजूर! मैं तो ये फल जो नीचे गिर गये थे, इन्हें वापस चिपका रहा था।
चौकीदार गुस्से में चीखा- शर्म नहीं आती झूठ बोलते हुए! अभी चल मेरे साथ! तुम्हारे पिताजी से शिकायत करता हूँ। कहाँ है तुम्हारे पिताजी!
जटाशंकर हकलाते हुए बोला- जी! पिताजी तो इसी पेड पर चढे हुए हैं। उन्होंने ही तो सारे फल तोड कर नीचे गिराये हैं।
चौकीदार अचंभित हो उठा।
जहाँ पिताजी स्वयं अनैतिक कार्य करते हो, वहाँ पुत्र को क्या कहा जा सकता है। उसे संस्कारी बनाने की बात हवा में महल बनाने जैसी होगी। संस्कारों का प्रारंभ स्वयं से होता है।

26 जटाशंकर -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म. सा.


26 जटाशंकर    -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी . सा.
जटाशंकर बगीचे में घूमने के लिये गया था। वह फूलों का बडा शौकीन था। उसे फूल तोड़ना, सूंघना और फिर पाँवों के नीचे मसल देना अच्छा लगता था।
उसकी इस आदत से सभी परेशान थे। बगीचे वाले उसे अंदर आने ही नहीं देते थे। फिर भी वह नजर बचाकर पहुँच ही जाता था।
एक शहर में उसका जाना हुआ। बगीचे में घूमते घूमते कुछ मनोहारी फूलों पर उसकी नजर पडी। वहाँ लगे बोर्ड को भी देखा। उसने पल भर सोचा, निर्णय लिया। और फूलों को न तोड़कर पूरी डालियों को ही.... मूल से ही कुछ पौधों को उखाडने लगा।
उसने एकाध पौधा तोडा ही था कि चौकीदार डंडा घुमाता हुआ पहुँचा और कहा- ऐ बच्चे! क्या कर रहे हो!
-बोर्ड पर लिखी चेतावनी तुमने नहीं पढी कि यहाँ फूल तोडना मना है?
जटाशंकर ने बडी बेफिक्री से कहा- हुजूर पढी है चेतावनी!
-फिर तुम चेतावनी का उल्लंघन क्यों कर रहे हो?
- मैंने कोई उल्लंघन नहीं किया! बोर्ड पर साफ लिखा है- फूल तोडना मना है। मैंने फूल नहीं तोडे हैं। मैं तो डालियाँ और पौधों को उखाड रहा हूँ। और पौधों को उखाडने का मना इसमें नहीं लिखा है।
चौकीदार बिचारा अपना सिर पीट कर रह गया।
हम मूल को ही तोड़ने में लगे है। सूचना फूल को भी नहीं तोड़ने की है। तर्क हम दे सकते हैं। पर सूचना का जो कथ्य है, उससे हम विश्वासघात कर बैठते हैं। जब फूल को भी नहीं तोडना है तो यह बात समझ में आनी ही चाहिये कि मूल को तो हाथ भी नहीं लगाना है। अपने जीवन के संदर्भ में मूल की बात समझे।

सोमवार, 23 जुलाई 2012

25 जटाशंकर -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म. सा.

25 जटाशंकर      -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी . सा.

जटाशंकर की आदत से उसकी पत्नी बडी परेशान थी। वह उसके हर काम में हमेशा मीन मेख निकालता ही था। गलती निकाले बिना... और गलती निकाल कर दो चार कडवे शब्द बोले बिना उसकी रोटी जैसे पचती नहीं थी।
अक्सर खाने में कोई न कोई कमी निकालता ही था। उसकी पत्नी बडी मेहनत करती कि कैसे भी करके मेरे पति मेरे खाना बनाने की कला से पूर्ण संतुष्ट होकर तृप्ति का अनुभव करें। पर जटाशंकर अलग ही माटी का बना था।
उसकी पत्नी प्रशंसा के दो शब्द सुनने के लिये तरस गई थी। पर मिले हमेशा उसे कडवे शब्द ही थे।
उसकी पत्नी ने भोजन में टमाटर की चटनी परोसी थी। तो जटाशंकर तुनक कर बोला- अरे! जिस टमाटर की तुमने चटनी बनायी, यदि इसके स्थान पर तुम टमाटर की सब्जी बनाती तो ज्यादा अच्छा रहता... बडा मजा आता...! मगर तूंने चटनी बनाकर सारा काम बेकार कर दिया।
दूसरे दिन उसने टमाटर की चटनी न बनाकर सब्जी बना दी। जटाशंकर मुँह चढाता हुआ बोला- आज के टमाटर तो चटनी योग्य थे... आनंद ही कुछ अलग होता! तूंने आज सब्जी बना कर गुड गोबर कर दिया।
बेचारी पत्नी करे भी तो क्या करे! चटनी बनाती है तो सब्जी की फरमाइश और सब्जी बनाती है तो चटनी की इच्छा!
दोनों बातें कैसे हो सकती थी।
मगर एक दिन जटाशंकर की पत्नी ने ठान लिया कि देखती हूँ आज वे क्या करते हैं?
उसने टमाटर की सब्जी परोस दी। जटाशंकर अपनी आदत के मुताबिक बोला- कितना अच्छा होता... यदि टमाटर की चटनी बनी होती!
उसकी पत्नी तुरंत अंदर गई और चटनी परोसते हुए कहा- ये लो चटनी! अब तो आप प्रसन्न हैं न!
जटाशंकर पल भर के लिये तो हडबडा गया। उसे पता नहीं था कि वो दोनों ही सामग्री तैयार रखेगी।
मगर कुछ ही पलों के बाद संभलते हुए और संभल कर अपनी आदत के अनुसार बिगडते हुए कहा- अरे! तुमने सारा काम उल्टा कर दिया! जिस टमाटर की चटनी बनानी चाहिये थी, उसकी तो सब्जी बना दी और जिस टमाटर की सब्जी बनानी थी, उसकी चटनी बना दी। सारा काम तुऊंधा ही करते हो।
बेचारी पत्नी क्या बोलती? अब इसका तो कोई उपाय नहीं था।
जो व्यक्ति ठान लेते हैं कि मुझे क्रोध करना ही है, उनको दुनिया की कोई ताकत समझा नहीं सकती। उनके लिये बहाने बहुत हैं।

24 जटाशंकर -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म. सा.


24 जटाशंकर      -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी . सा.

जटाशंकर तिलमिलाता हुआ जा रहा था। आँखों के कोनों में लाली उभर आई थी। नथुने फड़क रहे थे। ललाट में दो सल स्पष्ट नजर आ रहे थे।
सामने दोस्त जटाशंकर मिला। उसने अपने दोस्त के चेहरे को देखा तो उस पर छाई विषाद की रेखाऐं नजर आई।
उसने रूक कर जटाशंकर से पूछा क्या बात है? क्या सुबह सुबह भाभी से झगड़ा हुआ है?
पाँव पटक कर जटाशंकर बोला अरे नहीं। यह दुनिया कितनी चालबाज और मक्कार हो गई है।
क्यों? क्या हुआ?
अरे। आज सुबह ही सुबह एक अपरिचित दूध वाले से मैंने साढे चार रूपये का दूध खरीदा। पाँच रूपये दिये तो उसने खोटी अठन्नी पकड़ा दी।
उसके जाने के आधे घंटे भर बाद मुझे पता चला कि वह अठन्नी तो नकली है। क्या जमाना आ गया? घोर कलियुग?
घटशंकर ने पूछा-अरे। बुरा हुआ। अच्छा बताओं तो वह अठन्नी कैसी है।
जटाशंकर ने धीरे से कहा वो... वो... तो मैंने अभी अभी सब्जी खरीदी और सब्जी वाली मांजी को पकड़ा दी। भगवान तेरा लाख लाख शुक्रिया कि खोटी अठन्नी चल गई। वह हाथ आकाश की ओर करते हुए बोला
किसी और की मक्कारी पर क्रुद्ध होने वाला व्यक्ति जब स्वयं वैसी ही हरकत करता है तो अपने आपको सर्वथा निर्दोष समझता है। यही कथनी और करनी का अंतर है।

23 जटाशंकर -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म. सा.

23 जटाशंकर      -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी . सा.

जटाशंकर परीक्षा में फेल हो गया था। उसने चेहरा उदासीनता और हीन भाव से भरा था। वह यह तो अच्छी तरह जानता था कि उसके फेल होने का कारण क्या है?
उसने इस बार पढ़ाई में मन ही नहीं लगाया था। खेलने और बातों में पूरा साल बिता दिया था। फिर भी वह दोष अध्यापक को दे रहा था कि उसने मुझे पूरे नंबर नहीं दिये और फेल कर दिया।
वह दोस्तों के सामने बार बार अपने आक्रोश को अभिव्यक्त कर रहा था।
पिताजी ने जब परीक्षाफल देखा तो उसे डांटते हुए कहा पूरा साल इधर उधर घूमता रहा। पढ़ाई की नहीं तो पास कहां से होगा?
पिताजी की डांट सुनकर जटाशंकर रोने लगा। उसका रोना और रोनी सूरत देखकर पिताजी ने सोचा जो होना था, वह तो हो गया। अब यदि ज्यादा डांटा गया तो पता नहीं यह क्या क्या विचार कर लेगा? अत: इसे सांत्वना देनी चाहिये।
पिताजी ने जटाशंकर को आधे घंटे के बाद अपने पास बुला और कहा बेटा! चिंता न करो। तुम्हारे भाग्य में फेल होना ही लिखा था, इसलिये ज्यादा फ़िक्र न करो।
जटाशंकर ने कुछ सोचकर तुरंत जवाब दिया पिताजी, अच्छा हुआ जो मैंने इस वर्ष पढ़ाई नहीं की। जब मेरे भाग्य में फेल होना ही लिखा। तब पढ़ाई करता तो भी फेल ही होता।
मात्र सांत्वना के लिये कही गई भाग्य की बात का जटाशंकर ने अलग ही अर्थ निकाला था।
यह समझना जरूरी है कि पुरूषार्थ को कभी भी चुनौती नहीं दी जानी चाहिये। पुरूषार्थ का परिणाम उपलब्ध न होने की दिशा में भाग्य का आशावाद जरूरी होता है। परन्तु बिना पुरूषार्थ किये ही भाग्य के अधीन सोचना अनुचित है।

22 जटाशंकर -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म. सा.

22 जटाशंकर      -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी . सा.

जटाशंकर का मन पढ़ाई में नहीं लगता था। पिता से डरकर वह पढने के लिये बैठ ज़रूर जाता था। रात में वह पढ़ाई करता था। परीक्षाएं सिर पर थी फिर भी चिंतित नहीं था।
सुबह ही सुबह उसके पिता ने कहा बेटा! कल तुमने रात पढ़ाई नहीं की। क्या जल्दी सो गये?
जटाशंकर सो तो जल्दी गया था। पर वह जानता था कि सच बोलने से डांट तो मिलेगी ही मार भी मिल सकती है। उसने असत्य का प्रयोग करते हुए कहा नहीं पिताजी। कल तो मैं अपने कमरे में रात बारह बजे तक पढ़ता रहा था। पिताजी ने कहा क्या कहा? रात बारह बजे तक पढ़ रहे थे लेकिन कल रात को लाईट 10 बजे ही चली गई थी। सुनकर जटाशंकर घबराया।
उसने तुरंत जबाब देते हुए कहा क्या बताउं पिताजी! कल मैं पढ़ाई में इतना लीन हो गया था कि लाइट कब चली गई, मुझे पता ही नहीं चला।
प्रत्युत्तर उसके भोलेपन को भी अभिव्यक्त कर रहा था और उसकी असत्यता को भी।
एक झूठ को छिपाने के लिए दूसरे झूठ का आश्रय लेना होता है पर जरूरी नहीं कि दूसरा झूठ पहले झूठ को छिपा ही देगा। सच तो यही है कि सच बहुत जल्दी प्रकट हो जाता है।

21 जटाशंकर -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म. सा.

21 जटाशंकर      -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी . सा.
जटाशंकर नौटंकी में काम करता था। उसका डीलडौल इतना विशाल था कि राजा का अभिनय उसे ही करना होता था।
महाराणा प्रताप के नाटक में उसे महाराणा का रोल मिला। वह नाटक इतना प्रसिद्ध हुआ कि जगह जगह खेला जाने लगा। जटाशंकर इतनी बार वह नाटक कर गया कि वह अपना मूल परिचय भूल गया और अपने आपको महाराणा प्रताप ही समझने लगा।
वह हर समय ढाल बांधकर, सिर पर लौहटोप धारण कर, कवच धारण कर, हाथ में विशाल भाला लिये महाराणा प्रताप की वेशभूषा में रहने लगा।
एक बार वह बस में सवार था। बस में भीड़ थी। वह हाथ में भाला लिये खड़ा था। भाला बहुत लम्बा था। कंडक्टर ने कहा भाई साहब! आपके भाले से बस की चद्दर में छेद हो रहा है। मेहरबानी कर भाला थोडा टेढा कर लें। जटाशंकर ने जबाव दिया मैं महाराणा प्रताप हूं। मुझे कहने वाला कौन? मेरा भाला सीधा ही रहेगा।
कंडक्टर बिचारा बड़ा परेशान हो गया। उसने सोचा ये महाराणा प्रताप तो मेरी बस ही तोड देगा। कोई उपाय करना चाहिये।
अगला बस स्टेण्ड आते ही कंडक्टर जोर से चिल्लाया चित्तौड़ आ गया।
चित्तौड का नाम सुनते ही महाराणा प्रताप नीचे उतर गये।
आदमी नकली व्यक्तित्व के साथ जीता है। वह जो नहीं है, वही अपने आपको मान लेता है। यही भ्रमणा है और यही संसार का कारण है।

20 जटाशंकर -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म. सा.

20 जटाशंकर      -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी . सा.

उम्र छोटी होने पर भी जटाशंकर बहुत तेज तर्रार था। हाजिर जवाब था। बगीचे में आम्रफलों से लदे वृक्षों को देखकर उसके मुँह में पानी भर आया। वह चुपके से बगीचे में घुसा और पेड पर चढ़ गया। आमों को तोड़ तोड़कर नीचे फेंकने लगा। दस-पन्द्रह आम तोड़ लेने के बाद भी वह लगातार और आम तोड़ रहा था।
वह एक और आम तोड़ रहा था कि बगीचे का मालिक हाथ में डंडा लेकर भीतर चला आया।
जटाशंकर को आम तोड़ते देखकर चिल्लाने लगा।
जटाशंकर पलभर में सारी स्थिति समझ गया। क्षणभर में दिमागी कसरत करता हुआ कहने लगा।
पधारिये बाबूजी !
उसे मुस्कराते देख बगीचे के मालिक का गुस्सा सातवें आसमान पर चढ गया।
एक तो आम तोड़ रहा है, उपर से मुस्करा भी रहा है? तू नीचे उतर! फिर चखाता हूं मजा।
जटाशंकर कहने लगा- अरे! भलाई को तो जमाना ही नहीं रहा। कौन कहता है कि मैं आम तोड़ रहा था। अरे! ये आम नीचे पड़े थे। शायद हवा से नीचे गिर गये होंगे। मैं इधर से गुज़र रहा था, तो मैने सोचा कि आम नीचे पड़े हैं। कोई ले जायेगा तो आपका नुकसान हो जायेगा, इसलिए मैं तो इन गिरे हुए आमों को वापस चिपका रहा था। मैं कोई तोड़ नहीं रहा था। इसमें भी आप नाराज़ होते हैं तो मैं ये चला।
बगीचे का मालिक देखता ही रह गया।
बातों से उलझाना और उलझाकर घुमाना अलग बात है और सत्यता को स्वीकार करना अलग बात है। यही संसार के विस्तार और आत्म अस्तित्व के ऊर्ध्वारोहण का आधार है।

19 जटाशंकर -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म. सा.

19 जटाशंकर      -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी . सा.
स्वभाव से ढीला ढाला जटाशंकर किसी भी बात पर दृढ नहीं रह पाता था। इसके कारण उसके माता पिता भी बहुत परेशान रहते थे तथा उसे बार बार समझाते थे कि थोडा दृढ़ रहना चाहिये। अपनी बात पर डटे रहना चाहिये। जो पकड़ लिया, उसे छोड़ना नहीं चाहिये।
सुन सुन कर जटाशंकर तंग आ गया। आखिर उसने तय कर लिया कि अब मैं पकडी बात तो हरगिज नहीं छोडूंगा। डटा रहूंगा। प्राण जाए पर वचन न जाइ का प्राण से पालन करूंगा।
एक बार विचारों में खोया किसी गली से गुजर रहा था। उसने आगे जाते हुए एक गधे को देखा। पता नहीं, क्या मन में आया कि उसने गधे की पुंछ पकड़ ली।
कुछ देर तो गधा सीधा चलता रहा पर जब उसने अपनी पुंछ पर मंडराता खतरा महसूस हुआ तो उसने अपना परिचय देना प्रारम्भ किया। उसने दुलत्ती झाडना शुरू कर दिया। जटाशंकर को अपनी मां के वचन याद हो आये कि पकडी चीज को छोड़ना नहीं चाहिये। उसने मन को मजबूत कर लिया कि आज कुछ भी हो जाये, पुंछ नहीं छोडूंगा।
भागते और लात मारते गधे के पीछे पुंछ पकड कर मार खाते जटाशंकर को जब लोगों ने देखा तो कहा अरे! पुंछ छोड़ क्यों नहीं देता?
जटाशंकर ने जवाब दिया कैसे छोड़े? मेरी मां ने कहा था पकड़ी वस्तु का त्याग नहीं करना चाहिये।
आग्रह जब दुराग्रह , कदाग्रह में बदल जाता है तो स्थिति ऐसी ही हो जाती है। हर क्रिया में विवेक का उपयोग तो होना ही चाहिये।

18 जटाशंकर -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म. सा.

18 जटाशंकर      -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी . सा.
घटाशंकर नाव पर सवार था। नदी उफान पर थी। अकेला घटाशंकर उकता रहा था। वह नाव के नाविक मि. जटाशंकर से बातें करने लगा। नाविक को बातों में कोई रस नहीं था। दूर दूर तक कोई दूसरी नाव भी नजर नहीं आ रही थी। किनारा अभी दूर था। अभी आधा रास्ता भी पार नहीं हुआ था। नदी बहुत गहरी और तीव्र धार वाली थी। मौसम बिगड रहा था। बादल उमड घुमड रहे थे। हल्की बौछारों का प्रकोप प्रांरभ हो गया था। आसपास छाई हरियाली को देखकर घटाशंकर का मन आकाश में उड रहा था।
उसे नाविक से पूछा क्यों भाई! कितना पढे लिखे हों?
नाविक ने कहा हजूर! अनपढ़ हूं।
अरे! तुम्हें गणित विद्या आती है कुछ! यह जानकर कि नाविक अनपढ है, उसका उपहास करते हुए अंहकार से तनकर घटाशंकर ने पूछा।
नाविक उदास आँखों से झांकते हुए बोला बिल्कुल भी नहीं!
सुनकर मुस्कराते हुए घटाशंकर ने कहा फिर तो चार आना जिन्दगी तुम्हारी पानी में गई।
घटाशंकर ने फिर पूछा तुम्हें कुछ पता है कि विज्ञान की क्या नई खोज है? कुछ विज्ञान विद्या आती है तुम्हें?
नाविक रूआंसा होकर बोला बिल्कुल भी नहीं हजूर! हम तो बचपन से ही नाव चलाते हैं। नदी जानते हैं, पानी जानते हैं और आमने सामने का किनारा जानते हैं। विज्ञान ज्ञान हम क्या जाने?
घटाशंकर ने अपने चेहरे की बनावट से उसकी हँसी उडाते हुए कहा फिर तो और चार आना अर्थात् आधी जिंदगी तुम्हारी पानी में गई।
उसे अपनी विद्वता पर बडा गर्व था।
अपने प्रश्नों पर और ना में मिल रहे उत्तरों से वह बडा ही प्रसन्न था।
जटाशंकर बडा परेशान हो रहा था। उसका उपहास उडाते घटाशंकर पर वह अन्दर ही अन्दर बहुत नाराज भी हो रहा था।
घटशंकर ने कुछ ही पलों के बाद फिर प्रश्न किया कुछ ज्योतिष विद्या आती है तुम्हें! ग्रह नक्षत्रों की यह दुनिया, कुण्डली और हस्तरेखाऐं, कुछ आता है।
जटाशंकर आक्रोश युक्त परेशानी के स्वरों में कहा बाबू साहब। हम तो ठहरे गरीब और अनपढ आदमी । हमें यह सब कहां से आयेगा?
ना सुनकर घटाशंकर बोला अरे। फिर तो तुम्हारी पौन जिंदगी पानी में गई।
इतने में थोडी आंधी चलने लगी। तूफान के कारण नदी के लहरों में उछाल आ गया। नाव डगमगाने लगी। नाविक समझ गया कि पानी तेज होने वाला है। नाव हिचकोले खा रही है। अब कुछ ही देर में यह पलट कर डूब सकती है।
सोच कर उसने बाबू मि. घटाशंकर से पूछा बाबू साहब। आपको तैरना आता हैं ?
घटाशंकर घबरा कर बोला नहीं। मुझे तैरना तो नहीं आता।
मुस्कुराते हुए जटाशंकर ने कहा अब नाव डूबने वाली है। मैं तो अभी कूदता हूं। तैर कर पार हो जाउंगा। लेकिन आपको तो तैरना आता नहीं। मेरी तो पौन जिंदगी ही पानी में गई। आपकी तो पूरी जिंदगी पानी में गई।
दूसरो की अज्ञानता देखना आसान है। अपनी अज्ञानता कौन देख पाता है? और जो अपनी अज्ञानता देख लेना शुरू कर देता है, समझो कि उसने ज्ञान की दिशा में कदम आगे बढा दिया है।
दूसरो का उपहास उडाना भी आसान है। लेकिन वैसी ही परिस्थिति अपने साथ होने पर ढंग से रोया भी नहीं जायेगा।

17 जटाशंकर -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म. सा.

17 जटाशंकर      -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी . सा.
विद्यालय से न केवल अपनी कक्षा में बल्कि पूरे विद्यालय में प्रथम स्थान प्राप्त कर खुशियों से झूमता हुआ जटाशंकर का बेटा घटाशंकर अपने घर लौट रहा था। वह बार बार अपने हाथ में कांप रहे प्रमाण पत्र को देखता और मन ही मन राजी होता। उसके दोस्त प्रसन्न थे। और उनकी बधाईयों को प्राप्त कर घटाशंकर प्रसन्न था।
वह रास्ते भर विचार करता रहा कि आज मेरे पिताजी जब इस प्रमाण पत्र को देखेंगे। मैंने भिन्न भिन्न विषयों में जो अंक प्राप्त किये हैं, उनकी संख्या देखेंगे तो वे मुझ पर कितने राजी होंगे? आज मेरी हर इच्छा पूरी होगी। पूरे घर में मेरी चर्चा होगी। पिताजी, माताजी, बडे भैया, मेरी जीजी के होठों पर आज मेरा ही नाम होगा। वह कल्पना कर रहा था कि पिताजी जब मेरी इच्छा जानना चाहेंगे तो मैं क्या मागूंगा?
आज छोटी मोटी किसी चीज से काम नहीं चलेगा! मैं तो मारूति मागूंगा! या फिर हीरो होण्डा ही ठीक रहेगा।
अपनी कल्पनाओं की काल्पनिक मस्ती में आनंदित होता हुआ जब वह घर पहुँचा तो प्यास लगने पर भी पहले उसने पानी नहीं पीया, वह खुशी खुशी पापा के पास पहुँचा। उसके पिताजी मि. जटाशंकर अपने बहीखातों में व्यस्त थे।
घटाशंकर ने पिताजी से कहा- पिताजी देखो! मैंने कितने अंक प्राप्त किये है। गणित में 100 में से 95 अंक, हिन्दी में 100 में से 90, अंग्रेजी में 100 में 92 अंक पाये हैं। आप देखो तो सही मेरा प्रमाण पत्र! आश्चर्यचकित रह जायेंगे।
पिताजी ने प्रमाण पत्र हाथ में लिया। एक पल देखने और सोचने के बाद जोर से खींचकर एक तमाचा अपने बेटे के गाल पर मारा !
घटाशंकर तो हैरान हो गया। कहाँ तो मैंने कल्पना की थी कि मुझे इनाम मिलेगा, यहाँ तो मार पड रही है। उसने पूछा- पिताजी ! आपने मुझे मारा क्यो?
जटाशंकर ने कहा- मेरा बेटा होकर कम करता है। 100 के 95 कर दिये। अरे मारवाड़ी 100 के 150 करता है। तूंने तो कम करके मेरी नाक काट दी।
यदि तूंने 100 में से 110 अंक पाये होते तो मैं राजी होता।
घटाशंकर ने अपने पिताजी का तर्क सुना तो अपना माथा पीट लिया।
संसारी आदमी सदैव सौदे की भाषा में ही बात करता है। वही समझता है। संसार को सौदे की भाषा में समझे, तब तक तो बात समझ में आती है। परन्तु जब धर्म में भी सौदे की भावना आती है, वहाँ समझना चाहिये कि उसने धर्म की महिमा को नहीं समझा है।

16 जटाशंकर -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म. सा.

16 जटाशंकर      -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी . सा.
अपनी हरकतों के कारण सारा गाँव जटाशंकर को मूर्ख कहता था। उसे न बोलने का भान था, न करने का! हांलाकि वह अपने आपको बडा ही समझदार और होशियार आदमी मानता था। वह अपने मुँह मिट्ठू था। मगर समस्या यह थी कि अनजाना आदमी भी उसकी आदतों को देखकर मूर्ख कह उठता था। वह तंग आ गया। क्रोध की सीमा नहीं रही। झल्लाते हुए उसने सोचा, यह गाँव ही बेकार है। यहाँ के लोग ईर्ष्या से भरे हैं। मेरी बढती और मेरा यश इन लोगों को सुहाता नहीं है । इसलिये जब देखो तब ये लोग मेरी निन्दा करते रहते है। उसने गाँव का त्याग करने का निर्णय कर लिया। उसने सोचा- दूसरे गाँव जाउँगा। वहाँ लोगों को मेरा परिचय होगा नहीं, तो वे लोग मुझे मूर्ख नहीं कहेंगे। वहाँ मैं अपनी बुद्धि का चमत्कार दिखाउँगा और यश कमाउँगा।
उसने दूसरे ही दिन गाँव को नमस्कार कर अंधेरे अंधेरे ही चल पडा। शाम तक चलता चलता थकान का अनुभव करता हुआ दूसरे गाँव पहुँचा। गाँव के बाहर कुऐं के पास एक विशाल वटवृक्ष के तले थोड़ी देर विश्राम हेतु बैठ गया। उसे प्यास लगी थी। कुऐं के पास टंकी थी । टंकी के नीचे एक ओर नल लगे हुए थे। गाँव की महिलाएं पानी भरने आ जा रही थी।
जटाशंकर को प्यास लगी थी। वह तुरंत टंकी के पास पहुँचा। नल से एक महिला पानी भर रही थी। नल चालू था। मटका भर कर महिला ने एक ओर हटाया ही था कि जटाशंकर अपनी हथेली और अंगुलियों को मोडकर उसे दोने का आकार देते हुए बूक से पानी पीने लगा। पानी पी लेने के बाद, प्यास बुझने के बाद वह अपनी गर्दन को हिलाकर नल को मना करने लगा कि बस भाई! पानी पी लिया। अब और पानी नहीं चाहिये। परन्तु नल अपने आप तो बन्द होता नहीं। उसे बन्द करने के स्थान पर बोल कर, गर्दन हिलाकर मना करने लगा। फिर भी जब नल बन्द नहीं हुआ तो जोर जोर से चीखकर कहने लगा- बस ! अब पानी नहीं चाहिये।
यह दृश्य पानी भरने आई तीन महिलाओं ने देखा तो जोर से बोल पडी- तुम बडे मूर्ख प्रतीत हो रहे हो।
मूर्ख शब्द सुना और वह आश्चर्यचकित हो गया। उसने तुरंत महिला से पूछा- तुम्हें कैसे मालूम पडा कि मैं मूर्ख हूँ। इसी शब्द से पीछा छुड़ाने के लिये तो अपने गाँव को छोड़ा और यहाँ आया। यहाँ आते ही मेरे इस नाम का पता आपको कैसे हो गया?
महिला ने हँसते हुए कहा- गाँव छोड़ने से विशेषण नहीं बदलता । स्वभाव बदलता है तो विशेषण बदलता है। तुम्हारी हरकत मूर्खता भरी थी तो मूर्ख ही तो कहा जायेगा।
जटाशंकर कुछ समझ नहीं पाया।
व्यक्ति के स्वभाव की पहचान उसके आचरण से होती है। आचरण में यदि अविवेक है तो केवल चाहने से यश नहीं मिल सकता। हमारी चाह के साथ आचरण का तालमेल जरूरी है।

बुधवार, 18 जुलाई 2012

15 जटाशंकर -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म. सा.


15  जटाशंकर      -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी . सा.

जटाशंकर अपने तीन अन्य मित्रों के साथ घूमने चला था। अंधेरी रात में छितरी चांदनी का मनोरम माहौल था। मंद बहारों की मस्ती भरे वातावरण में उन्होंने शाम को शराब पी थी। शराब की मदहोशी के आलम में दिमाग शून्य था। उडा जा रहा था।
घूमते घूमते नदी के किनारे पहुँच गये। ठंडी हवा के झोंकों में सफर करने का उनका मानस तत्पर बना। नदी के किनारे नाव पडी थी। उसे देखा तो सोचा कि आज रात नाव में घूमने का आनंद उठा लिया जाय! जटाशंकर के इस प्रस्ताव का सबने समर्थन किया।
चारों मित्र नाव पर सवार हो गये। बैठते ही पतवारें थाम ली। रात के ठंडक भरे माहौल में उन्होंने नाव खेना प्रारंभ किया। शराब का नशा था तो पता ही नहीं चला कि समय कितना बीता!
रात भर वे नाव चलाते रहे। पतवारें खेते रहे। नशे के कारण हाथों में थकान का जरा भी अनुभव न था।
पौ फटने का समय आया। प्रकाश धीरे धीरे छाने लगा। तो एक दोस्त बोला- अरे ! नाव चलाने में अपन इतने मशगूल हो गये कि पता ही नहीं चला, कितनी दूर आ गये ! सवेरा होने का अर्थ है कि रात भर अपन चलते रहे हैं। कम से कम 100 कोस की दूरी तो अवश्य तय कर ली होगी।  अब वापस जायेंगे कैसे?
अचानक जटाशंकर की निगाहें किनारे पर पडी। अब शराब का नशा दूर हो चुका था। किनारे को देखा तो अचंभे में रह गया। वही घाट, वही झोंपडियाँ ! यह तो अपना ही गाँव मालूम होता है। यह कैसे हो सकता है! आखिर अपन रात भर चले हैं।
अचानक नाव को देखा, बंधी हुई रस्सी को देखा तो खिलखिलाकर हँस पडा।
अरे! आगे बढेंगे कैसे! नाव को खूंटे से तो खोला ही नहीं। बंधी नाव को ही चलाने का प्रयास करते रहे और समझते रहे कि नाव चल रही है और रास्ता तय हो रहा है।
नाव को खूंटे से  खोले  बिना आगे नहीं बढा जा सकता ।  ठीक  इसी प्रकार मोह के खूंटे  से मन  को खोले बिना अध्यात्म के क्षेत्र में प्रगति नहीं की जा सकती।

14 जटाशंकर -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म. सा.


14 जटाशंकर      -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी . सा.

पेट में दर्द होने के कारण जटाशंकर अस्पताल पहुंचा। वैद्यराजजी ने अच्छी तरह निरीक्षण करने के उपरान्त दवाई की नौ पुडियाँ उसके हाथ में देते हुए कहा प्रतिदिन तीन पुडियाँ लेना और तीन दिन बाद वापस आना।
तीन दिन पूरे होने के बाद वापस वैद्यराजजी के पास पहुँचा। दर्द के बारे में बताते हुए कहा पेट का दर्द तो बढ ही गया है। साथ ही गले में दर्द का अनुभव हो रहा है।
वैद्यराज ने पूछा तुमने दवाई तो बराबर ली। जटाशंकर ने कहाँ श्रीमान् दवा आपके कहे अनुसार ली। पूरी ली। पर पुडिया का कागज बहुत ही चिकना था। गले के नीचे उतरता ही नहीं था। दम निकला जाता था मेरा। पर मैने नौ ही पुडिया उतार ली थी।
आश्चर्य चकित होते हुए वैद्यराज जी बोले-कागज खाने को किसने कहा था?
हुजूर। आपने ही तो रोज तीन पुडी खाने को कहा था। हाँ, उस पुडिया में धूल, राख, कचरा जैसा कुछ था, उसको फेंक देता था। पर पुडियाँ मैंने बराबर खाई
सुनने के बाद वैद्यराज जी यह निर्णय न कर सके कि मुझे इस पर क्रोध करना चाहिये या हँसना चाहिये।
मूल तो बात सही समझ की है। यथार्थ समझ के अभाव में बहुत बार हम जिसे छोडना है, उसे ग्रहण कर लेते हैं और स्वीकार करने योग्य को फेंक बैठते हैं।

13 जटाशंकर -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म. सा.


13 जटाशंकर      -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी . सा.
हडबड़ाकर जटाशंकर उठ बैठा। काफी देर तक आँखें मसलता रहा। हाथ मुँह धोकर कुर्सी पर बडे आराम से चिन्तन की मुद्रा में बैठ गया। यह सोच रहा था। अपने सपने के बारे में जो उसने अभी अभी देखा था। सपने में उसके घर हजार व्यक्तियों का भोजन का समारोह होने वाला था। पाक-कलाकार पकवान तैयार कर रहे थे। घेवर से कमरा भरा था। लड्डुओं से थाल सजे थे। गरम-गरम कचोरियाँ  और पूरियाँ तली जा रही थी। खाना प्रारंभ हो, उससे पहले ही उसकी आँख खुल गई थी।
वह परेशान था कि इतनी मिठाईयों का मैं अकेले क्या करूँगा? थोडी देर बाद अचानक उसे एक विचार सूझा। क्यों न सारे गाँव को, पूरी न्यात को भोजन का आमंत्रण दे दूं? अपने निर्णय पर गौरव युक्त आनंद का अनुभव करता हुआ पूरे गाँव को न्योते गली गली घूमने लगा।
लोग उसकी स्थिति जानते थे, अत: अचरज करने लगे लेकिन सोचा हो सकता है, कोई लाटरी लगी हो या गढा धन मिला होगा।
भोजन के वक्त वहाँ पहुँचे पंचो और लोगों ने तब बहुत ही आश्चर्य का अनुभव किया जब जटाशंकर के घर भोजन निर्माण व्यवस्था की कोई तैयारी नहीं दिखी। आखिर जटाशंकर की तलाश की गई तो पता चला कि वह अपने कमरे में सो रहा है। पंचो ने उसे बुलाया और कहा पूरे गाँव की, हमारी तोहीन कर रहे हो। आमंत्रण तो दे दिया और सामग्री का अता पता हीं नहीं।
- हुजूर। मैं सामग्री ही तो तैयार कर रहा था, आपने नाहक ही बुलाया लिया।
- अरे। तुम तो सो रहे थे।
- हाँ मैं सो ही तो रहा था। वही तो मेरी तैयारी है। पंचों के दिमाग में यह बात नहीं बैठी कि भोजन की तैयारी का सोने से क्या संबंध है?
जटाशंकर ने कहा हुजूर। आप दस मिनट बिराजिये। मैं अभी सोता हूं। सोते ही मुझे मिठाईयों और अन्य सामग्री का सपना आयेगा बस मैं आपको तुरन्त भोजन परोस दूंगा।
सपने की बात सुनकर सभी लोग हसँने लगे। जटाशंकर से कहा मुर्ख! सपने की मिठाई क्या खायी जा सकती है? जटाशंकर की बातों में आकर अपने आपको बेवकूफ़ बनने के विचार से खिसियाकर सारे लोग रवाना हो गये।
सपना कभी अपना नहीं होता। जरूरी नहीं कि बंद आँखों से ही सपना देखा जाता है। बहुत से लोग है जो खुली आँखों से सपना देते है। बंद आँखों से देखे गये सपने के माहौल से बाहर आना आसान है। जबकि खुली आँखों से देखे गये सपने रंग-रंगीन मायाजाल से बाहर यथार्थ की दुनिया में आ पाना बहुत मुश्किल है।

12 जटाशंकर -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म सा.

108 Names of Parshvanath
Shri Ajhara Parshvanath
Shri Mahadeva Parshvanath
Shri Alokik Parshvanath
Shri Makshi Parshvanath
Shri Amijhara Parshvanath
Shri Mandovara Parshvanath
Shri Amrutjhara Parshvanath
Shri Manoranjan Parshvanath
Shri Ananda Parshvanath
Shri Manovanchit Parshvanath
Shri Antariksh Parshvanath
Shri Muhri Parshvanath
Shri Ashapuran Parshvanath
Shri Muleva Parshvanath
Shri Avanti Parshvanath
Shri Nageshvar Parshvanath
Shri Bareja Parshvanath
Shri Nagphana Parshvanath
Shri Bhabha Parshvanath
Shri Navasari Parshvanath
Shri Bhadreshvar Parshvanath
Shri Nakoda Parshvanath
Shri Bhateva Parshvanath
Shri Navapallav Parshvanath
Shri Bhayabhanjan Parshvanath
Shri Navkhanda Parshvanath
Shri Bhidbhanjan Parshvanath
Shri Navlakha Parshvanath
Shri Bhiladiya Parshvanath
Shri Padmavati Parshvanath
Shri Bhuvan Parshvanath
Shri Pallaviya Parshvanath
Shri Champa Parshvanath
Shri Panchasara Parshvanath
Shri Chanda Parshvanath
Shri Phalvridhi Parshvanath
Shri Charup Parshvanath
Shri Posali Parshvanath
Shri Chintamani Parshvanath
Shri Posina Parshvanath
Shri Chorvadi Parshvanath
Shri Pragatprabhavi Parshvanath
Shri Dada Parshvanath
Shri Ranakpura Parshvanath
Shri Dharnendra Parshvanath
Shri Ravana Parshvanath
Shri Dhingadmalla Parshvanath
Shri Shankhala Parshvanath
Shri Dhiya Parshvanath
Shri Stambhan Parshvanath
Shri Dhrutkallol Parshvanath
Shri Sahastraphana Parshvanath
Shri Dokadiya Parshvanath
Shri Samina Parshvanath
Shri Dosala Parshvanath
Shri Sammetshikhar Parshvanath
Shri Dudhyadhari Parshvanath
Shri Sankatharan Parshvanath
Shri Gadaliya Parshvanath
Shri Saptaphana Parshvanath
Shri Gambhira Parshvanath
Shri Savara Parshvanath
Shri Girua Parshvanath
Shri Serisha Parshvanath
Shri Godi Parshvanath
Shri Sesali Parshvanath
Shri Hamirpura Parshvanath
Shri Shamala Parshvanath
Shri Hrinkar Parshvanath
Shri Shankeshver Parshvanath
Shri Jiravala Parshvanath
Shri Sirodiya Parshvanath
Shri Jotingada Parshvanath
Shri Sogatiya Parshvanath
Shri Jagavallabh Parshvanath
Shri Somchintamani Parshvanath
Shri Kesariya Parshvanath
Shri Sphuling Parshvanath
Shri Kachulika Parshvanath
Shri Sukhsagar Parshvanath
Shri Kalhara Parshvanath
Shri Sultan Parshvanath
Shri Kalikund Parshvanath
Shri Surajmandan Parshvanath
Shri Kalpadhrum Parshvanath
Shri Svayambhu Parshvanath
Shri Kalyan Parshvanath
Shri Tankala Parshvanath
Shri Kamitpuran Parshvanath
Shri Uvasaggaharam Parshvanath
Shri Kankan Parshvanath
Shri Vadi Parshvanath
Shri Kansari Parshvanath
Shri Vahi Parshvanath
Shri Kareda Parshvanath
Shri Vanchara Parshvanath
Shri Koka Parshvanath
Shri Varanasi Parshvanath
Shri Kukadeshvar Parshvanath
Shri Varkana Parshvanath
Shri Kunkumarol Parshvanath
Shri Vighnapahar Parshvanath
Shri Lodhan Parshvanath
Shri Vignahara Parshvanath
Shri Lodrava Parshvanath
Shri Vijaychintamani Parshvanath
Shri Manmohan Parshvanath
Shri Vimal Parshvanath
108 Names of Parshvanath
Shri Ajhara Parshvanath
Shri Mahadeva Parshvanath
Shri Alokik Parshvanath
Shri Makshi Parshvanath
Shri Amijhara Parshvanath
Shri Mandovara Parshvanath
Shri Amrutjhara Parshvanath
Shri Manoranjan Parshvanath
Shri Ananda Parshvanath
Shri Manovanchit Parshvanath
Shri Antariksh Parshvanath
Shri Muhri Parshvanath
Shri Ashapuran Parshvanath
Shri Muleva Parshvanath
Shri Avanti Parshvanath
Shri Nageshvar Parshvanath
Shri Bareja Parshvanath
Shri Nagphana Parshvanath
Shri Bhabha Parshvanath
Shri Navasari Parshvanath
Shri Bhadreshvar Parshvanath
Shri Nakoda Parshvanath
Shri Bhateva Parshvanath
Shri Navapallav Parshvanath
Shri Bhayabhanjan Parshvanath
Shri Navkhanda Parshvanath
Shri Bhidbhanjan Parshvanath
Shri Navlakha Parshvanath
Shri Bhiladiya Parshvanath
Shri Padmavati Parshvanath
Shri Bhuvan Parshvanath
Shri Pallaviya Parshvanath
Shri Champa Parshvanath
Shri Panchasara Parshvanath
Shri Chanda Parshvanath
Shri Phalvridhi Parshvanath
Shri Charup Parshvanath
Shri Posali Parshvanath
Shri Chintamani Parshvanath
Shri Posina Parshvanath
Shri Chorvadi Parshvanath
Shri Pragatprabhavi Parshvanath
Shri Dada Parshvanath
Shri Ranakpura Parshvanath
Shri Dharnendra Parshvanath
Shri Ravana Parshvanath
Shri Dhingadmalla Parshvanath
Shri Shankhala Parshvanath
Shri Dhiya Parshvanath
Shri Stambhan Parshvanath
Shri Dhrutkallol Parshvanath
Shri Sahastraphana Parshvanath
Shri Dokadiya Parshvanath
Shri Samina Parshvanath
Shri Dosala Parshvanath
Shri Sammetshikhar Parshvanath
Shri Dudhyadhari Parshvanath
Shri Sankatharan Parshvanath
Shri Gadaliya Parshvanath
Shri Saptaphana Parshvanath
Shri Gambhira Parshvanath
Shri Savara Parshvanath
Shri Girua Parshvanath
Shri Serisha Parshvanath
Shri Godi Parshvanath
Shri Sesali Parshvanath
Shri Hamirpura Parshvanath
Shri Shamala Parshvanath
Shri Hrinkar Parshvanath
Shri Shankeshver Parshvanath
Shri Jiravala Parshvanath
Shri Sirodiya Parshvanath
Shri Jotingada Parshvanath
Shri Sogatiya Parshvanath
Shri Jagavallabh Parshvanath
Shri Somchintamani Parshvanath
Shri Kesariya Parshvanath
Shri Sphuling Parshvanath
Shri Kachulika Parshvanath
Shri Sukhsagar Parshvanath
Shri Kalhara Parshvanath
Shri Sultan Parshvanath
Shri Kalikund Parshvanath
Shri Surajmandan Parshvanath
Shri Kalpadhrum Parshvanath
Shri Svayambhu Parshvanath
Shri Kalyan Parshvanath
Shri Tankala Parshvanath
Shri Kamitpuran Parshvanath
Shri Uvasaggaharam Parshvanath
Shri Kankan Parshvanath
Shri Vadi Parshvanath
Shri Kansari Parshvanath
Shri Vahi Parshvanath
Shri Kareda Parshvanath
Shri Vanchara Parshvanath
Shri Koka Parshvanath
Shri Varanasi Parshvanath
Shri Kukadeshvar Parshvanath
Shri Varkana Parshvanath
Shri Kunkumarol Parshvanath
Shri Vighnapahar Parshvanath
Shri Lodhan Parshvanath
Shri Vignahara Parshvanath
Shri Lodrava Parshvanath
Shri Vijaychintamani Parshvanath
Shri Manmohan Parshvanath
Shri Vimal Parshvanath
108 Names of Parshvanath
Shri Ajhara Parshvanath
Shri Mahadeva Parshvanath
Shri Alokik Parshvanath
Shri Makshi Parshvanath
Shri Amijhara Parshvanath
Shri Mandovara Parshvanath
Shri Amrutjhara Parshvanath
Shri Manoranjan Parshvanath
Shri Ananda Parshvanath
Shri Manovanchit Parshvanath
Shri Antariksh Parshvanath
Shri Muhri Parshvanath
Shri Ashapuran Parshvanath
Shri Muleva Parshvanath
Shri Avanti Parshvanath
Shri Nageshvar Parshvanath
Shri Bareja Parshvanath
Shri Nagphana Parshvanath
Shri Bhabha Parshvanath
Shri Navasari Parshvanath
Shri Bhadreshvar Parshvanath
Shri Nakoda Parshvanath
Shri Bhateva Parshvanath
Shri Navapallav Parshvanath
Shri Bhayabhanjan Parshvanath
Shri Navkhanda Parshvanath
Shri Bhidbhanjan Parshvanath
Shri Navlakha Parshvanath
Shri Bhiladiya Parshvanath
Shri Padmavati Parshvanath
Shri Bhuvan Parshvanath
Shri Pallaviya Parshvanath
Shri Champa Parshvanath
Shri Panchasara Parshvanath
Shri Chanda Parshvanath
Shri Phalvridhi Parshvanath
Shri Charup Parshvanath
Shri Posali Parshvanath
Shri Chintamani Parshvanath
Shri Posina Parshvanath
Shri Chorvadi Parshvanath
Shri Pragatprabhavi Parshvanath
Shri Dada Parshvanath
Shri Ranakpura Parshvanath
Shri Dharnendra Parshvanath
Shri Ravana Parshvanath
Shri Dhingadmalla Parshvanath
Shri Shankhala Parshvanath
Shri Dhiya Parshvanath
Shri Stambhan Parshvanath
Shri Dhrutkallol Parshvanath
Shri Sahastraphana Parshvanath
Shri Dokadiya Parshvanath
Shri Samina Parshvanath
Shri Dosala Parshvanath
Shri Sammetshikhar Parshvanath
Shri Dudhyadhari Parshvanath
Shri Sankatharan Parshvanath
Shri Gadaliya Parshvanath
Shri Saptaphana Parshvanath
Shri Gambhira Parshvanath
Shri Savara Parshvanath
Shri Girua Parshvanath
Shri Serisha Parshvanath
Shri Godi Parshvanath
Shri Sesali Parshvanath
Shri Hamirpura Parshvanath
Shri Shamala Parshvanath
Shri Hrinkar Parshvanath
Shri Shankeshver Parshvanath
Shri Jiravala Parshvanath
Shri Sirodiya Parshvanath
Shri Jotingada Parshvanath
Shri Sogatiya Parshvanath
Shri Jagavallabh Parshvanath
Shri Somchintamani Parshvanath
Shri Kesariya Parshvanath
Shri Sphuling Parshvanath
Shri Kachulika Parshvanath
Shri Sukhsagar Parshvanath
Shri Kalhara Parshvanath
Shri Sultan Parshvanath
Shri Kalikund Parshvanath
Shri Surajmandan Parshvanath
Shri Kalpadhrum Parshvanath
Shri Svayambhu Parshvanath
Shri Kalyan Parshvanath
Shri Tankala Parshvanath
Shri Kamitpuran Parshvanath
Shri Uvasaggaharam Parshvanath
Shri Kankan Parshvanath
Shri Vadi Parshvanath
Shri Kansari Parshvanath
Shri Vahi Parshvanath
Contact Numbers of Some Tirth :-
AAGLOD TIRTH - 0091-02763-283615
283734
---------------------------------------------
-------------------------------------
AAKOLA TIRTH - 0091-0724-2433059
---------------------------------------------
--------------------------------------
AGASHI TIRTH - 0091-0250-2587183
---------------------------------------------
--------------------------------------
AGRA TIRTH - 0091-0562-254559
---------------------------------------------
--------------------------------------
AJIMGUNJ TIRTH - 0091-03483-253312
---------------------------------------------
--------------------------------------
ALAUKIK PARSHVANATH TIRTH -
0091-0734-2610205 2610246
---------------------------------------------
--------------------------------------
ALIPOR TIRTH - 0091-02634-232973
---------------------------------------------
--------------------------------------
ALIRAJPUR TIRTH - 0091-07394-233261
---------------------------------------------
--------------------------------------
AMIZARA TIRTH - 0091-07292-261444
232401
---------------------------------------------
--------------------------------------
AMRAVATI TIRTH - 0091-0863-2214834
---------------------------------------------
--------------------------------------
ANASTU - 0091-02666-232225 ,,,234049
---------------------------------------------
--------------------------------------
ANTRIXJI TIRTH - 0091-07254-234005
---------------------------------------------
--------------------------------------
AYODHYA TIRTH - 0091-05278-232113
---------------------------------------------
--------------------------------------
AYODHYAPURAM TIRTH -
0091-02841-281388
---------------------------------------------
--------------------------------------
AYODHYAPURAM TIRTH (BARWALA) -
0091-02841-222433 222074
---------------------------------------------
--------------------------------------
AZAHARA TIRTH - 0091-02875-222233
---------------------------------------------
--------------------------------------
BADNAVAR TIRTH - 0091-07295-2338
14 233736
---------------------------------------------
--------------------------------------
BAGVADA TIRTH - 0091-0260-2342313
---------------------------------------------
--------------------------------------
BALSANA TIRTH - 0091-02568-278214
238091
---------------------------------------------
--------------------------------------
BANGLORE TIRTH - 0091-080-2873678
---------------------------------------------
--------------------------------------
BAVLA (SAVSTHI TIRTH) -
0091-02714-232612 098240 96353
---------------------------------------------
--------------------------------------
BHADRAVATI TIRTH - 0091-07175-2660
30
---------------------------------------------
--------------------------------------
BHADRESHWAR - 0091-02838-282361
282382
---------------------------------------------
--------------------------------------
BHADRESHWAR TIRTH -
0091-02838-282361 2822362
---------------------------------------------
--------------------------------------
BHALWADA TIRTH - 0091-02427-2363
17 236251
---------------------------------------------
--------------------------------------
BHARUCH TIRTH - 0091-02642-262586
221750
---------------------------------------------
--------------------------------------
BHAVNAGAR TIRTH - 0091-0278-24273
84
---------------------------------------------
--------------------------------------
BHELUPUR TIRTH - 0091-0542-275407
---------------------------------------------
--------------------------------------
BHILDIYAJI TIRTH - 0091-02836-2325
16
---------------------------------------------
--------------------------------------
BHOPAVAR TIRTH - 0091-07296-266861
266830
---------------------------------------------
--------------------------------------
BHOROL TIRTH - 0091-02737-214321
---------------------------------------------
--------------------------------------
BHOROL TIRTH - 0091-02737-224321
---------------------------------------------
--------------------------------------
BHOYNI TIRTH - 0091-02715-250204
---------------------------------------------
--------------------------------------
BHUJ - 0091-02831-289223 289224
---------------------------------------------
--------------------------------------
BIDDA (72 JINALAYA) KUTCHH -
0091-02834-
---------------------------------------------
--------------------------------------
BIMBDOD TIRTH - 0091-07412-236277
222400
---------------------------------------------
--------------------------------------
BODELI TIRTH - 0091-02665-222067
---------------------------------------------
--------------------------------------
BORIJ TIRTH - 0091-079-3226380
3243180
---------------------------------------------
--------------------------------------
BOTER JINALAYA (KUTCHH) -
0091-02834-275450 275452
---------------------------------------------
--------------------------------------
BOTER JINALAYA TIRTH -
0091-02834-244159 275454 220426
---------------------------------------------
--------------------------------------
CHAMPAPURI TIRTH -
0091-0641-2500205
---------------------------------------------
--------------------------------------
CHANSMA TIRTH - 0091-02734-223296
---------------------------------------------
--------------------------------------
CHARBHUJA (RAJSAMAND) -
0091-02954-248101.........248192
---------------------------------------------
--------------------------------------
CHARUP TIRTH - 0091-02866-277562
---------------------------------------------
--------------------------------------
CHDOTAR (DEESA) - 0091-02742-2805
31
---------------------------------------------
--------------------------------------
CHENNAI TIRTH - 0091-044-2582628
---------------------------------------------
--------------------------------------
CHORVAD TIRTH - 0091-02734-267320
---------------------------------------------
--------------------------------------
DABHOI TIRTH - 0091-02663-258150
---------------------------------------------
--------------------------------------
DATHA (MAHUVA) - 0091-02844-2235
92
---------------------------------------------
--------------------------------------
DATHA TIRTH - 0091-02842-283324
---------------------------------------------
--------------------------------------
DEDHIYA (KUTCHH) - 0091-02834-2935
04
---------------------------------------------
--------------------------------------
DELHI TIRTH - 0091-011-23270489
---------------------------------------------
--------------------------------------
DELVADA TIRTH - 0091-02885-222233
---------------------------------------------
--------------------------------------
DEVANHALLI TIRTH - 0091-08119-2823
36 2873663
---------------------------------------------
--------------------------------------
DEVAS TIRTH - 0091-07272-252677
---------------------------------------------
--------------------------------------
DHAKDI TIRTH - 0091-02775-295290-
09601466918
---------------------------------------------
--------------------------------------
DHANAP TIRTH - 0091-079-3272009
---------------------------------------------
--------------------------------------
DHAR TIRTH - 0091-07292-232245
232563
---------------------------------------------
--------------------------------------
DHARMCHAKRA PRABHAV TIRTH -
0091-0253-2336041 2336176
---------------------------------------------
--------------------------------------
DHULIYA TIRTH - 0091-02562-238091
230280
---------------------------------------------
--------------------------------------
DIV TIRTH - 0091-02875-222233
---------------------------------------------
--------------------------------------
DUMRA (GUNPARSHV TIRTH) KUTCHH
- 0091-02834-286684
---------------------------------------------
--------------------------------------
GAJABHISHEK TIRTH -
0091-02631-237350
---------------------------------------------
--------------------------------------
GAMBHU TIRTH - 0091-02734-282325
---------------------------------------------
--------------------------------------
GANDHAR TIRTH - 0091-02641-232345
---------------------------------------------
--------------------------------------
GHETI (PALITANA) TIRTH -
0091-02848-252316
---------------------------------------------
--------------------------------------
GHOGHA TIRTH - 0091-0278-2882335
---------------------------------------------
--------------------------------------
GIRNARJI TIRTH - 0091-0285-2650179
---------------------------------------------
--------------------------------------
GUDIWADA TIRTH - 0091-08674-2442
91 244266
---------------------------------------------
--------------------------------------
GUMMILERU TIRTH - 0091-0885-23403
7
---------------------------------------------
--------------------------------------
GUNIYAJI TIRTH - 0091-06324-224045
---------------------------------------------
--------------------------------------
HALARDHAM TIRTH - 0091-02833-2540
63 254156 254157 254158
---------------------------------------------
--------------------------------------
HARIDWAR - 0091-0133-2425263
2423773
---------------------------------------------
--------------------------------------
HASTGIRI (PALITANA) -
0091-02848-284101/2/3/4
---------------------------------------------
--------------------------------------
HASTGIRI TIRTH - 0091-02848-284101
---------------------------------------------
--------------------------------------
HASTINAPUR TIRTH - 0091-01233-2801
40
---------------------------------------------
--------------------------------------
HOSHIYARPUR TIRTH -
0091-01882-223325
---------------------------------------------
--------------------------------------
HRIMKAR TIRTH (GUNTUR) -
0091-0863-2293213
---------------------------------------------
--------------------------------------
IDER TIRTH - 0091-02778-250080
250442
---------------------------------------------
--------------------------------------
INGALPATH TIRTH - 0091-07414-2642
34 264320
---------------------------------------------
--------------------------------------
JAKHAU (KUTCHH) - 0091-02831-2872
24
---------------------------------------------
--------------------------------------
JAKHAU (KUTCHH) - 0091-02831-2871
07
---------------------------------------------
--------------------------------------
JALANDHAR TIRTH - 0091-0181-24056
74
---------------------------------------------
--------------------------------------
JAMNAGAR TIRTH - 0091-0288-26789
23
---------------------------------------------
--------------------------------------
JIYAJIGUNJ TIRTH - 0091-03483-2557
15
---------------------------------------------
--------------------------------------
KADAMBGIRI TIRTH - 0091-02848-2821
01
---------------------------------------------
--------------------------------------
KAKTUR TIRTH - 0091-0861-238341
---------------------------------------------
--------------------------------------
KALIKUND TIRTH - 0091-02714-225739
225218
---------------------------------------------
--------------------------------------
KALIKUND TIRTH (KALIKAT) -
0091-0495-704293
---------------------------------------------
--------------------------------------
KAMBOI TIRTH - 0091-02734-281315
---------------------------------------------
--------------------------------------
KAMPILAJI TIRTH (FARUKHABAD) -
0091-05690-271289
---------------------------------------------
--------------------------------------
KANGDA TIRTH - 0091-01892-265187
---------------------------------------------
--------------------------------------
KARAD TIRTH - 0091-02164-223348
---------------------------------------------
--------------------------------------
KARMADI TIRTH - 0091-07412-283379
---------------------------------------------
--------------------------------------
KATARIYA (KUTCHH) - 0091- 098797
13967
---------------------------------------------
--------------------------------------
KATARIYA TIRTH - 0091-02837-273341
---------------------------------------------
--------------------------------------
KATHGOLA TIRTH - 0091-03483-255715
---------------------------------------------
--------------------------------------
KATRAJ TIRTH - 0091-0212-24370944
---------------------------------------------
--------------------------------------
KAVI TIRTH - 0091-02644-230229
---------------------------------------------
--------------------------------------
KHAMBHAT TIRTH - 0091-02698-2236
96
---------------------------------------------
--------------------------------------
KIRTI DHAM (SONGADH) -
0091-02846-244071
---------------------------------------------
--------------------------------------
KIRTI STAMBH (NAYA NAKODA)
RAJSTHAN - 0091-02934-284027
09928209761
---------------------------------------------
--------------------------------------
KOHBA TIRT - 0091-079-3276204
---------------------------------------------
--------------------------------------
KOKAN SHETRUNJAY TIRTH -
0091-022-25472389 25475811
---------------------------------------------
--------------------------------------
KOLKATTA - 0091-033-25554187
---------------------------------------------
--------------------------------------
KOSBAD TIRTH - 0091-02528-241004
---------------------------------------------
--------------------------------------
KOTHARA (KUTCHH) - 0091-02831-2823
18
---------------------------------------------
--------------------------------------
KOTHARA (KUTCHH) - 0091-02831-2822
35
---------------------------------------------
--------------------------------------
KOTHARA TIRTH - 0091-02831-282235
---------------------------------------------
--------------------------------------
KULPAKJI TIRTH - 0091-08685-2281696
---------------------------------------------
--------------------------------------
KUMBHARIYAJI TIRTH -
0091-02749-262178
---------------------------------------------
--------------------------------------
KUMBHOJGIRI TIRTH -
0091-0230-2584456
---------------------------------------------
--------------------------------------
KUNDALPUR (NALNDA) -
0091-06112-281846
---------------------------------------------
--------------------------------------
KUNDALPUR TIRTH - 0091-0612-28162
4
---------------------------------------------
--------------------------------------
KURKUTESHVAR TIRTH -
0091-07421-231241 231343
---------------------------------------------
--------------------------------------
LAXMANI TIRTH - 0091-07384-2338874
233545
---------------------------------------------
--------------------------------------
LAYJA (KUTCHH) - 0091-02834-230506
223102
---------------------------------------------
--------------------------------------
LUNAVA (RAJSTHAN) -
0091-02938-252228 252807
---------------------------------------------
--------------------------------------
MAHUDI TIRTH - 0091-02763-284626
284627
---------------------------------------------
--------------------------------------
MAHUVA TIRTH - 0091-02844-222571
---------------------------------------------
--------------------------------------
MALPURA (DADA WADI) -
0091-01437-226243
---------------------------------------------
--------------------------------------
MANAS MANDIRAM TIRTH -
0091-02527-272398 270371
---------------------------------------------
--------------------------------------
MANDAVI (72 JINALAYA) KUTCHH -
0091-02834-275451 275452 275609
---------------------------------------------
--------------------------------------
MANDVI TIRTH - 0091-02834-220880
220046
---------------------------------------------
--------------------------------------
MATAR TIRTH - 0091-02694-285530
---------------------------------------------
--------------------------------------
MAXI TIRTH - 0091-07363-232037
---------------------------------------------
--------------------------------------
MEHSANA TIRTH - 0091-02762-251674
251087
---------------------------------------------
--------------------------------------
MERU VIHAR DHAM (KHADOL) -
0091-02731-293241 093280N83600
---------------------------------------------
--------------------------------------
MERUDHAM TIRTH - 0091-079-327607
7
---------------------------------------------
--------------------------------------
METRANA TIRTH - 0091-02767-281242
---------------------------------------------
--------------------------------------
MODHERA TIRTH - 0091-02734-284390
---------------------------------------------
--------------------------------------
MOHANKHEDA TIRTH -
0091-07296-232225 234369
---------------------------------------------
--------------------------------------
MOTA POSHINA TIRTH -
0091-02775-283471 283330
---------------------------------------------
--------------------------------------
MOTI KHAKHAR - 0091-02838-240030
240023
---------------------------------------------
--------------------------------------
MOTI KHAKHAR (KUTCHH) -
00091-02838-275491
---------------------------------------------
--------------------------------------
MUCHHALA MAHAVIR TIRTH
(GHANERAV) - 0091-02934-284056
---------------------------------------------
--------------------------------------
MUJPUR TIRTH - 0091-02733-281343
281344
---------------------------------------------
--------------------------------------
MYSORE TIRTH - 0091-0821-2431242
---------------------------------------------
--------------------------------------
NADOL TIRTH (RAJSTHAN) -
0091-02934-240044
---------------------------------------------
--------------------------------------
NALIYA (KUTCHH) - 0091-02831-2223
27 222337
---------------------------------------------
--------------------------------------
NALIYA (KUTCHH) - 0091-02831-2872
24
---------------------------------------------
--------------------------------------
NALIYA TIRTH - 0091-02831-222327
---------------------------------------------
--------------------------------------
NANA POSHINA TIRTH -
0091-02778-266367
---------------------------------------------
--------------------------------------
NANDASAN TIRTH - 0091-02764-2732
65 267205
---------------------------------------------
--------------------------------------
NANDIGRAM TIRTH - 0091-0260-27820
89
---------------------------------------------
--------------------------------------
NARLAI TIRTH (RAJSTHAN) -
0091-02934-260424 260740
---------------------------------------------
--------------------------------------
NAVGRAH AARADHNA TIRTH -
0091-02672-244563 265035
---------------------------------------------
--------------------------------------
NAVGRAH JINALAY (GODHRA) -
0091-02672-244563 265035
---------------------------------------------
--------------------------------------
NAVSARI TIRTH - 0091-02637-258882
---------------------------------------------
--------------------------------------
NDAVGADH TIRTH - 0091-07292-2632
29
---------------------------------------------
--------------------------------------
NEW DELHI TIRTH - 0091-011-272022
25 2701621
---------------------------------------------
--------------------------------------
OMKAR TIRTH - 0091-0265-2242792
---------------------------------------------
--------------------------------------
OMKAR TIRTH (BARODA) -
0091-0265-2242792 6535192
---------------------------------------------
--------------------------------------
PALANPUR TIRTH - 0091-02742-253731
---------------------------------------------
--------------------------------------
PANSAR TIRTH - 0091-02764-288240
288402
---------------------------------------------
--------------------------------------
PARASALI TIRTH - 0091-07425-232855
---------------------------------------------
--------------------------------------
PARJAU (KUTCHH) - 0091-02831-2732
34
---------------------------------------------
--------------------------------------
PAROLI TIRTH - 0091-02676-234539
234510
---------------------------------------------
--------------------------------------
PARSHVA PADMALAYA TIRTH -
0091-02114-224177
---------------------------------------------
--------------------------------------
PARSHVA PRAGNALAYA TIRTH -
0091-02114-224177 228044
---------------------------------------------
--------------------------------------
PATAN TIRTH - 0091-02766-222278
---------------------------------------------
--------------------------------------
PATLIPUTRA TIRTH - 0091-0612-64577
7
---------------------------------------------
--------------------------------------
PAVAGADH TIRTH - 0091-02676-2456
06
---------------------------------------------
--------------------------------------
PAVAPURI TIRTH - 0091-06112-274736
---------------------------------------------
--------------------------------------
PEDMIRAM TIRTH - 0091-08816-2236
32
---------------------------------------------
--------------------------------------
PIYUSHPANI TIRTH - 0091-0251-28457
415 28454811
---------------------------------------------
--------------------------------------
PRABHAS PATAN TIRTH -
0091-02876-231638
---------------------------------------------
--------------------------------------
PUDAL TIRTH - 0091-044-6418577
6418292
---------------------------------------------
-------------------------------------
PURIMTAL TIRTH - 0091-0532-2400263
---------------------------------------------
--------------------------------------
RAJGADH TIRTH - 0091-07296-233145
---------------------------------------------
--------------------------------------
RAJGRUHI TIRTH - 0091-06112-255220
---------------------------------------------
--------------------------------------
RAMANIYA (RAJSTHAN) -
0091-02934-204901 92147 13653
---------------------------------------------
--------------------------------------
RANAKPUR - 0091-02934-285019
---------------------------------------------
--------------------------------------
RANI (ASTAPAD TIRTH) -
0091-02934-222715
---------------------------------------------
--------------------------------------
RANTEJ TIRTH - 0091-02734-267320
---------------------------------------------
--------------------------------------
RAPAR (KUTCHH) - 0091-02831-282235
282120
---------------------------------------------
--------------------------------------
RUJUVALIKA TIRTH - 0091-06736-2243
51
---------------------------------------------
--------------------------------------
SAGODIYA TIRTH - 0091-07412-239007
---------------------------------------------
--------------------------------------
SAMETSHIKHARJI TIRTH -
0091-06532-232226 232260
---------------------------------------------
--------------------------------------
SANYARA (KUTCHH) - 0091-02831-2842
23 284255/56
---------------------------------------------
--------------------------------------
SARHIND TIRTH - 0091-01763-232246
---------------------------------------------
--------------------------------------
SAVSTHI TIRTH - 0091-02714-232612
232081
---------------------------------------------
--------------------------------------
SEMLIYA TIRTH - 0091-07412-281210
---------------------------------------------
--------------------------------------
SHANKHALPUR TIRTH -
0091-02734-286408
---------------------------------------------
--------------------------------------
SHANKHESHWAR TIRTH -
0091-02733-273514 273324
---------------------------------------------
--------------------------------------
SHANKHESHWARDHAM TIRTH (KAMAN)
- 0091-0250-2210277 2210447
---------------------------------------------
--------------------------------------
SHAURIPURI TIRTH - 0091-05614-2347
17
---------------------------------------------
--------------------------------------
SHERISA TIRTH - 0091-02764-250126
---------------------------------------------
--------------------------------------
SHETRUNJAY DAM (PALITANA) -
0091-02848-252215
---------------------------------------------
--------------------------------------
SHETRUNJYA DAM TIRTH -
0091-02848-252215
---------------------------------------------
--------------------------------------
SHIYANI TIRTH - 0091-02753-251550
---------------------------------------------
--------------------------------------
SHRAVSTHI TIRTH - 0091-05252-2652
15
---------------------------------------------
--------------------------------------
SIDHHACHAL TIRTH (BANGLORE) -
0091-08119-282886
---------------------------------------------
--------------------------------------
SUMERU NAVKAR TIRTH -
0091-02666-231010
---------------------------------------------
--------------------------------------
SUTHARI -SANDHAN (KUTCHH) -
0091-02831-283243
---------------------------------------------
--------------------------------------
SUTHARI TIRTH - 0091-02831-284223
---------------------------------------------
--------------------------------------
SUTHRI (KUTCHH) - 0091-02831-2284
223
---------------------------------------------
--------------------------------------
SUYASH SHANTIDHAM TIRTH -
0091-02528-222616
---------------------------------------------
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TAGDI TIRTH - 0091-02713-232766
---------------------------------------------
--------------------------------------
TALAJA - 0091-02842-283324
---------------------------------------------
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TALAJA TIRTH - 0091-02842-222030
---------------------------------------------
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TALANPUR TIRTH - 0091-07297-233306
---------------------------------------------
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TALASARI TIRTH - 0091-02521-220383
---------------------------------------------
--------------------------------------
TALEGAON - +91-02114-296032 .....
9226321526
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TAPOVAN SANSKAR DHAM -
0091-02637-258959 258924
---------------------------------------------
--------------------------------------
TARANGAJI TIRTH - 0091-02761-2534
11
---------------------------------------------
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TERA (KUTCHH) - 0091-02831-289223
289433
---------------------------------------------
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TERA (KUTCHH) - 0091-02831-222237
---------------------------------------------
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TERA TIRTH - 0091-02831-289223
289224
---------------------------------------------
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THARAD TIRTH - 0091-02737-222036
---------------------------------------------
--------------------------------------
TINTODA (GUJRAT) - 0091-0232-85558
85549 85677
---------------------------------------------
--------------------------------------
TITHAL TIRTH - 0091-02632-248074
---------------------------------------------
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UJJAIN TIRTH - 0091-0734-555553
---------------------------------------------
--------------------------------------
UNA TIRTH - 0091-0285-222233
---------------------------------------------
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UNHEL TIRTH - 0091-07366-220258
220237
---------------------------------------------
--------------------------------------
UPERIYAJI TIRTH - 0091-02757-226826
---------------------------------------------
--------------------------------------
UVVASGHARAM TIRTH -
0091-0788-2710102
---------------------------------------------
--------------------------------------
VADALI TIRTH - 0091-02778-220319
220419
---------------------------------------------
--------------------------------------
VADNAGAR TIRTH - 0091-02734-2813
15
---------------------------------------------
--------------------------------------
VAHI TIRTH - 0091-07424-241430
---------------------------------------------
--------------------------------------
VALAM TIRTH - 0091-02765-285043
---------------------------------------------
--------------------------------------
VALLABHIPUR - 0091-02841-222433
222074
---------------------------------------------
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VALLBHIPUR TIRTH - 0091-02841-2224
33 222074
---------------------------------------------
--------------------------------------
VALVOD TIRTH - 0091-02696-288158
---------------------------------------------
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VANACHHARA TIRTH -
0091-02662-242511
---------------------------------------------
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VANKI TIRTH - 0091-02838-278240
---------------------------------------------
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VANKU (KUTCHH) - 0091-02831-273258
273273
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VANTHALI TIRTH - 0091-02872-222264
---------------------------------------------
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VARAPADHAR (KUTCHH) -
0091-02831-273216
---------------------------------------------
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VARKANA TIRTH - 0091-02934-222257
9950393752
---------------------------------------------
--------------------------------------
VARMANA TIRTH - 0091-0265-2830951
---------------------------------------------
--------------------------------------
VATAMAN DHARM DHAM TIRTH -
0091-02714-272308 098250 24531
---------------------------------------------
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VERAVAL TIRTH - 0091-0287-221381
---------------------------------------------
--------------------------------------
VIJAPUR TIRTH - 0091-02763-220209
---------------------------------------------
--------------------------------------
XTRIYAKUND TIRTH - 0091-06345-2223
61
---------------------------------------------
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ZAGHDIA TIRTH - 0091-02645-2208

12 जटाशंकर       -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म सा.

दो चींटियाँ आपसे में बाते करती हुई चली जा रही थी। अन्य चींटियों से थोड़ी बडी भी थी और ताक़तवर भी। किसी ने उनका नाम जटाशंकर और घटाशंकर रखा था। अपनी ताकत का अहंकार भी मानस में था। सामने से एक हाथी चला आ रहा था। हाथी के विशाल आकार को देखा तो चीटिंयां अपने मन में अपनी लघुता के कारण हीन भाव का अनुभव करने लगी।
उस हीन भाव से प्रेरित अंहकार भाव में डूबकर एक चींटी हाथी से कहने लगी- खा खा कर बड़े मोटे हुए जा रहे हो। कुछ ताकत भी है या नहीं, या यों ही वादी से भरें हो। हमसे लडोगे?
हाथी कुछ बोला नहीं। दूसरी चींटी ने उसे मौन देख पहली चींटी से कहने लगी।
छोड़ो बेचारे को! देखो कैसा घबरा रहा है। अरे वो बिचारा अकेला है, अपन दो है। छोड़ो। लडाई बराबर वालो में की जाती है। यह अकेला बिचारा अभी भाग जायेगा।
यह अपने मुँह मिट्ठू बनने का उदाहरण हैं। बहुत बार हम अपने थोथे अहं का प्रदर्शन उसके लिये करते हैं जो हकीकत में हमारे पास नहीं होता।