गुरुवार, 6 सितंबर 2012

48. जटाशंकर -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म.सा

48. जटाशंकर  -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म.सा
जटाशंकर स्कूल में पढता था। जाति का वह रबारी था। भेड बकरियों को चराता था। छोटे-से गाँव में वह रहता था।
अध्यापक ने गणित समझाते हुए क्लाँस में बच्चों से प्रश्न किया- बच्चों! मैं तुम्हें गणित का एक सवाल करता हूँ।
एक बाडा है। बाडे में पचास भेडें हैं। उनमें से एक भेड ने बाड कूदकर छलांग लगाली, तो बताओ बच्चों! उस बाडे में पीछे कितनी भेडें बची।
जटाशंकर ने हाथ उँचा किया। अध्यापक ने प्रेम से कहा- बताओ! कितनी भेडें बची।
जटाशंकर ने कहा- सर! एक भी नहीं!
अध्यापक ने लाल पीले होते हुए कहा- इतनी सी भी गणित नहीं आती। पचास में से एक भेड कम हुई तो पीछे उनपचास बचेगी न!
जटाशंकर ने कहा- यह आपकी गणित है। पर मैं गडरिया हूँ! भेडों को चराता हूँ! और भेडों की गणित मैं जानता हूँ! एक भेड ने छलांग लगायेगी और सारी भेडें उसके पीछे कूद पडेगी। वह न आगे देखेगी न पीछे! सर! उन्हें आपकी गणित से कोई लेना देना नहीं।
भेडों की अपनी गणित होती है। इसी कारण बिना सोचे अनुकरण की प्रवृत्ति को भेड चाल कहा जाता है। वहाँ अपनी बुद्धि का प्रयोग नहीं होता। अपनी सोच के आधार पर गुण दोष विचार कर जो निर्णय करता है, वही व्यक्ति अपने जीवन को सफल करता है।

46. जटाशंकर -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म.सा

जटाशंकर चाय पीने के लिये घटाशंकर की होटल पर पहुँचा था। थोडा आदत से लाचार था। हर काम में कमी निकालने का उसका स्वभाव था। उसके इस स्वभाव से सभी परेशान थे।
जहाँ खाना खाने जाता, वहाँ कम नमक या कम मिर्च की शिकायत करके पैसे कम देने का प्रयास करता!
घटाशंकर ने उसे चाय का कप प्रस्तुत किया। धीरे धीरे वह चाय पीता जा रहा था। और मानस में कोई नया बहाना खोजता जा रहा था।
पूरी चाय पीने के बाद वह क्रोध्ा में फुंफकारते हुए घटाशंकर के पास पहुँचा और जोर से चीखा- चाय में चीनी इतनी कम!
घटाशंकर धीमे से बोला- एक काम करो! सामने शक्कर की दुकान है, उस ओर मुँह कर लो! शक्कर से स्वाद से तुम्हारा मुँह मीठा हो जायेगा।
जटाशंकर ने विचार किया- यह उत्तर जोरदार दिया है। शक्कर की दुकान की ओर करने से मुँह मीठा कैसे हो जायेगा!
घटाशंकर ने कहा- चलो! पैसे लाओ!
जटाशंकर ने कहा- भैया! सामने ही स्टेट बैंक ऑफ़  बीकानेर एण्ड जयपुर का कार्यालय है, उसकी ओर मुँह करलो, पैसे मिल जायेंगे।
घटाशंकर खिसिया कर रह गया। उसका तर्क उसी को भारी पड गया था।
केवल मुँह उसकी ओर से करने से काम नहीं होता! धर्म की ओर केवल मुँह करने से या बातें करने से काम नहीं होता! उसे तो आचरण में लाना होता है, तभी जीवन को ऊँचाईयाँ प्राप्त होती है।