गुरुवार, 6 सितंबर 2012

46. जटाशंकर -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म.सा

जटाशंकर चाय पीने के लिये घटाशंकर की होटल पर पहुँचा था। थोडा आदत से लाचार था। हर काम में कमी निकालने का उसका स्वभाव था। उसके इस स्वभाव से सभी परेशान थे।
जहाँ खाना खाने जाता, वहाँ कम नमक या कम मिर्च की शिकायत करके पैसे कम देने का प्रयास करता!
घटाशंकर ने उसे चाय का कप प्रस्तुत किया। धीरे धीरे वह चाय पीता जा रहा था। और मानस में कोई नया बहाना खोजता जा रहा था।
पूरी चाय पीने के बाद वह क्रोध्ा में फुंफकारते हुए घटाशंकर के पास पहुँचा और जोर से चीखा- चाय में चीनी इतनी कम!
घटाशंकर धीमे से बोला- एक काम करो! सामने शक्कर की दुकान है, उस ओर मुँह कर लो! शक्कर से स्वाद से तुम्हारा मुँह मीठा हो जायेगा।
जटाशंकर ने विचार किया- यह उत्तर जोरदार दिया है। शक्कर की दुकान की ओर करने से मुँह मीठा कैसे हो जायेगा!
घटाशंकर ने कहा- चलो! पैसे लाओ!
जटाशंकर ने कहा- भैया! सामने ही स्टेट बैंक ऑफ़  बीकानेर एण्ड जयपुर का कार्यालय है, उसकी ओर मुँह करलो, पैसे मिल जायेंगे।
घटाशंकर खिसिया कर रह गया। उसका तर्क उसी को भारी पड गया था।
केवल मुँह उसकी ओर से करने से काम नहीं होता! धर्म की ओर केवल मुँह करने से या बातें करने से काम नहीं होता! उसे तो आचरण में लाना होता है, तभी जीवन को ऊँचाईयाँ प्राप्त होती है।

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