रविवार, 10 मई 2015

जटाशंकर का दोस्त लम्बे समय बाद शहर में आया था। व्यापार आदि के कारण वह लगभग तीन साल तक बाहर रहा था। काम इतना ज्यादा था कि अपने मित्र से दूरसंचार पर वार्तालाप भी नहीं कर पाया था।

जटाशंकर
 लेखक- पूज्य उपाध्याय श्री मणिप्रभसागरजी म.

जटाशंकर का दोस्त लम्बे समय बाद शहर में आया था। व्यापार आदि के कारण वह लगभग तीन साल तक बाहर रहा था। काम इतना ज्यादा था कि अपने मित्र से दूरसंचार पर वार्तालाप भी नहीं कर पाया था।
उसने जल्दी से आवश्यक कार्य निपटा कर मित्र के घर की ओर मुख किया। मित्र के घर पर पहुँचा तो पाया कि उसका मित्र घर पर नहीं है। उसका छोटा भाई वहीं था।
उसने छोटे भाई ने पूछा- भैया! मेरा दोस्त जटाशंकर दिखाई नहीं दे रहा। कहाँ है? क्या कर रहा है?
छोटे भाई ने जवाब दिया- कुछ दिन पहले दुकान खोली थी।
उसने पूछा- अच्छा किया। व्यापार होगा। दो पैसे की आय होगी तो बुढापे में काम आयेगी। पर वह है कहाँ!
सर! आप पूरी बात तो सुनिये।
उसने कहा- दुकान खोली थी। इस कारण वह जेल चला गया। अभी वहीं है।
- दुकान खोलने से जेल क्यों चला गया!
- अरे भाई! दुकान चाभी से नहीं, हथोडे से खोली थी, इसलिये।
ओह! चोरी की थी। फिर तो जेल जायेगा ही।
गलत काम का परिणाम तो भुगतना ही पडता है। कदाच यहाँ बच जाय पर कर्मराज के आगे कोई नहीं बच सकता। कर्मों का भुगतान तो करना ही होता है।