रविवार, 8 मार्च 2015

जटाशंकर सरकारी अफसर था। था नहीं, पर अपने आपको बहुत ज्यादा बुद्धिमान समझता था। उसके मन मस्तिष्क पर यह सुरूर छाया रहता था कि मुझ से ज्यादा चतुर व्यक्ति इस आँफिस में दूसरा नहीं है। वह पारिवारिक रिश्तेदारी के हिसाब से जल्दी ही प्रगति के पथ पर चढता हुआ अफसर बन गया था।

जटाशंकर

- पूज्य उपाध्याय श्री मणिप्रभसागरजी .

जटाशंकर सरकारी अफसर था। था नहीं, पर अपने आपको बहुत ज्यादा बुद्धिमान समझता था। उसके मन मस्तिष्क पर यह सुरूर छाया रहता था कि मुझ से ज्यादा चतुर व्यक्ति इस आँफिस में दूसरा नहीं है। वह पारिवारिक रिश्तेदारी के हिसाब से जल्दी ही प्रगति के पथ पर चढता हुआ अफसर बन गया था।
उसके अण्डर में काम करने वाला घटाशंकर एक बार उसके पास आया और बोला- सर! स्टोर पूरा भर चुका है। फाईलें बहुत जमा हो गई है। चालीस चालीस साल पुरानी फाईलें पडी है। कभी काम नहीं आती, इसलिये इनका निपटारा हो जाना चाहिये।
जटाशंकर कुछ पलों तक विचार करने के बाद बोला- मैं निरीक्षण करता हूँ, बाद में निर्णय लिया जायेगा।