सोमवार, 23 जुलाई 2012

21 जटाशंकर -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म. सा.

21 जटाशंकर      -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी . सा.
जटाशंकर नौटंकी में काम करता था। उसका डीलडौल इतना विशाल था कि राजा का अभिनय उसे ही करना होता था।
महाराणा प्रताप के नाटक में उसे महाराणा का रोल मिला। वह नाटक इतना प्रसिद्ध हुआ कि जगह जगह खेला जाने लगा। जटाशंकर इतनी बार वह नाटक कर गया कि वह अपना मूल परिचय भूल गया और अपने आपको महाराणा प्रताप ही समझने लगा।
वह हर समय ढाल बांधकर, सिर पर लौहटोप धारण कर, कवच धारण कर, हाथ में विशाल भाला लिये महाराणा प्रताप की वेशभूषा में रहने लगा।
एक बार वह बस में सवार था। बस में भीड़ थी। वह हाथ में भाला लिये खड़ा था। भाला बहुत लम्बा था। कंडक्टर ने कहा भाई साहब! आपके भाले से बस की चद्दर में छेद हो रहा है। मेहरबानी कर भाला थोडा टेढा कर लें। जटाशंकर ने जबाव दिया मैं महाराणा प्रताप हूं। मुझे कहने वाला कौन? मेरा भाला सीधा ही रहेगा।
कंडक्टर बिचारा बड़ा परेशान हो गया। उसने सोचा ये महाराणा प्रताप तो मेरी बस ही तोड देगा। कोई उपाय करना चाहिये।
अगला बस स्टेण्ड आते ही कंडक्टर जोर से चिल्लाया चित्तौड़ आ गया।
चित्तौड का नाम सुनते ही महाराणा प्रताप नीचे उतर गये।
आदमी नकली व्यक्तित्व के साथ जीता है। वह जो नहीं है, वही अपने आपको मान लेता है। यही भ्रमणा है और यही संसार का कारण है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें