बुधवार, 18 जुलाई 2012

14 जटाशंकर -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म. सा.


14 जटाशंकर      -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी . सा.

पेट में दर्द होने के कारण जटाशंकर अस्पताल पहुंचा। वैद्यराजजी ने अच्छी तरह निरीक्षण करने के उपरान्त दवाई की नौ पुडियाँ उसके हाथ में देते हुए कहा प्रतिदिन तीन पुडियाँ लेना और तीन दिन बाद वापस आना।
तीन दिन पूरे होने के बाद वापस वैद्यराजजी के पास पहुँचा। दर्द के बारे में बताते हुए कहा पेट का दर्द तो बढ ही गया है। साथ ही गले में दर्द का अनुभव हो रहा है।
वैद्यराज ने पूछा तुमने दवाई तो बराबर ली। जटाशंकर ने कहाँ श्रीमान् दवा आपके कहे अनुसार ली। पूरी ली। पर पुडिया का कागज बहुत ही चिकना था। गले के नीचे उतरता ही नहीं था। दम निकला जाता था मेरा। पर मैने नौ ही पुडिया उतार ली थी।
आश्चर्य चकित होते हुए वैद्यराज जी बोले-कागज खाने को किसने कहा था?
हुजूर। आपने ही तो रोज तीन पुडी खाने को कहा था। हाँ, उस पुडिया में धूल, राख, कचरा जैसा कुछ था, उसको फेंक देता था। पर पुडियाँ मैंने बराबर खाई
सुनने के बाद वैद्यराज जी यह निर्णय न कर सके कि मुझे इस पर क्रोध करना चाहिये या हँसना चाहिये।
मूल तो बात सही समझ की है। यथार्थ समझ के अभाव में बहुत बार हम जिसे छोडना है, उसे ग्रहण कर लेते हैं और स्वीकार करने योग्य को फेंक बैठते हैं।

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