बुधवार, 18 जुलाई 2012

13 जटाशंकर -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म. सा.


13 जटाशंकर      -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी . सा.
हडबड़ाकर जटाशंकर उठ बैठा। काफी देर तक आँखें मसलता रहा। हाथ मुँह धोकर कुर्सी पर बडे आराम से चिन्तन की मुद्रा में बैठ गया। यह सोच रहा था। अपने सपने के बारे में जो उसने अभी अभी देखा था। सपने में उसके घर हजार व्यक्तियों का भोजन का समारोह होने वाला था। पाक-कलाकार पकवान तैयार कर रहे थे। घेवर से कमरा भरा था। लड्डुओं से थाल सजे थे। गरम-गरम कचोरियाँ  और पूरियाँ तली जा रही थी। खाना प्रारंभ हो, उससे पहले ही उसकी आँख खुल गई थी।
वह परेशान था कि इतनी मिठाईयों का मैं अकेले क्या करूँगा? थोडी देर बाद अचानक उसे एक विचार सूझा। क्यों न सारे गाँव को, पूरी न्यात को भोजन का आमंत्रण दे दूं? अपने निर्णय पर गौरव युक्त आनंद का अनुभव करता हुआ पूरे गाँव को न्योते गली गली घूमने लगा।
लोग उसकी स्थिति जानते थे, अत: अचरज करने लगे लेकिन सोचा हो सकता है, कोई लाटरी लगी हो या गढा धन मिला होगा।
भोजन के वक्त वहाँ पहुँचे पंचो और लोगों ने तब बहुत ही आश्चर्य का अनुभव किया जब जटाशंकर के घर भोजन निर्माण व्यवस्था की कोई तैयारी नहीं दिखी। आखिर जटाशंकर की तलाश की गई तो पता चला कि वह अपने कमरे में सो रहा है। पंचो ने उसे बुलाया और कहा पूरे गाँव की, हमारी तोहीन कर रहे हो। आमंत्रण तो दे दिया और सामग्री का अता पता हीं नहीं।
- हुजूर। मैं सामग्री ही तो तैयार कर रहा था, आपने नाहक ही बुलाया लिया।
- अरे। तुम तो सो रहे थे।
- हाँ मैं सो ही तो रहा था। वही तो मेरी तैयारी है। पंचों के दिमाग में यह बात नहीं बैठी कि भोजन की तैयारी का सोने से क्या संबंध है?
जटाशंकर ने कहा हुजूर। आप दस मिनट बिराजिये। मैं अभी सोता हूं। सोते ही मुझे मिठाईयों और अन्य सामग्री का सपना आयेगा बस मैं आपको तुरन्त भोजन परोस दूंगा।
सपने की बात सुनकर सभी लोग हसँने लगे। जटाशंकर से कहा मुर्ख! सपने की मिठाई क्या खायी जा सकती है? जटाशंकर की बातों में आकर अपने आपको बेवकूफ़ बनने के विचार से खिसियाकर सारे लोग रवाना हो गये।
सपना कभी अपना नहीं होता। जरूरी नहीं कि बंद आँखों से ही सपना देखा जाता है। बहुत से लोग है जो खुली आँखों से सपना देते है। बंद आँखों से देखे गये सपने के माहौल से बाहर आना आसान है। जबकि खुली आँखों से देखे गये सपने रंग-रंगीन मायाजाल से बाहर यथार्थ की दुनिया में आ पाना बहुत मुश्किल है।

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