मंगलवार, 24 जुलाई 2012

26 जटाशंकर -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म. सा.


26 जटाशंकर    -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी . सा.
जटाशंकर बगीचे में घूमने के लिये गया था। वह फूलों का बडा शौकीन था। उसे फूल तोड़ना, सूंघना और फिर पाँवों के नीचे मसल देना अच्छा लगता था।
उसकी इस आदत से सभी परेशान थे। बगीचे वाले उसे अंदर आने ही नहीं देते थे। फिर भी वह नजर बचाकर पहुँच ही जाता था।
एक शहर में उसका जाना हुआ। बगीचे में घूमते घूमते कुछ मनोहारी फूलों पर उसकी नजर पडी। वहाँ लगे बोर्ड को भी देखा। उसने पल भर सोचा, निर्णय लिया। और फूलों को न तोड़कर पूरी डालियों को ही.... मूल से ही कुछ पौधों को उखाडने लगा।
उसने एकाध पौधा तोडा ही था कि चौकीदार डंडा घुमाता हुआ पहुँचा और कहा- ऐ बच्चे! क्या कर रहे हो!
-बोर्ड पर लिखी चेतावनी तुमने नहीं पढी कि यहाँ फूल तोडना मना है?
जटाशंकर ने बडी बेफिक्री से कहा- हुजूर पढी है चेतावनी!
-फिर तुम चेतावनी का उल्लंघन क्यों कर रहे हो?
- मैंने कोई उल्लंघन नहीं किया! बोर्ड पर साफ लिखा है- फूल तोडना मना है। मैंने फूल नहीं तोडे हैं। मैं तो डालियाँ और पौधों को उखाड रहा हूँ। और पौधों को उखाडने का मना इसमें नहीं लिखा है।
चौकीदार बिचारा अपना सिर पीट कर रह गया।
हम मूल को ही तोड़ने में लगे है। सूचना फूल को भी नहीं तोड़ने की है। तर्क हम दे सकते हैं। पर सूचना का जो कथ्य है, उससे हम विश्वासघात कर बैठते हैं। जब फूल को भी नहीं तोडना है तो यह बात समझ में आनी ही चाहिये कि मूल को तो हाथ भी नहीं लगाना है। अपने जीवन के संदर्भ में मूल की बात समझे।

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