सोमवार, 16 जुलाई 2012

3 जटाशंकर -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म. सा.


3 जटाशंकर    उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म. सा.

जटाशंकर बाजार में कागज़ के पंखे बेच रहा था। जोर जोर से बोल रहा था ‘एक रूपये का एक पंखाजिन्दगी भर चलेगाइस बात की गारन्टी। नहीं चले तो पैसा वापस!’
सुनकर लोग अचरज से भर उठे। इतना सस्ता झेलने वाला पंखाऔर जिंदगी भर चलने वालायदि नहीं चला तो नुकसान भी नहींपैसे वापस मिल जायेंगे। देखते देखते लोगों की भीड़ लग गई। लोग पंखा खरीदने के लिये उतावले बावरे हो उठे। कहीं ऐसा  हो कि पंखे खत्म हो जाय और हमारा नंबर ही नहीं लगे। सौ के करीब पंखे हाथो हाथ बिक गये।
महिलाएं उनका उपयोग करने के लिये अधीर हो उठी। कागज़ का बना पंखा। दो चार बार हिला कि फट गयाउसे धराशाही होते देख लोग क्रुद्ध हो उठे। दूसरे दिन वही पंखे बेचने वाला जब पुकार लगाता हुआ गली से गुजरा तो लोगों ने अपने टूटे पंखे दिखाकर उस पर झूठ बोलने का आरोप लगाया। तुमने हमें ठगा है। कहा था जिंदगी भर चलेंगे। अरे एक दिन भी नहीं चले। हमारा रूपया वापस करों।
जटशंकर ने धीरज से जवाब देते हुए कहा भाईमैंने आपको कोई धोखा नहीं दिया है। मैंने बिल्कुल सच कहा था कि ये पंखे जिन्दगी भर चलेंगे। आपने इस वाक्य का अर्थ नहीं समझा।
उसने रहस्योद्धाटन करते हुये कहा मैने यह नहीं कहा था कि आपकी जिंदगी तक चलेंगे। मैने यह कहा था कि जब तक इन पंखों की जिंदगी हैतब तक चलेंगे। लोगों ने उसके तर्क के आगे चुप्पी साधने में ही भलाई समझी।
शब्द और तर्क की जालसाज़ी से लोगों को निरूत्तर किया जा सकता हैपर जीवन भाव और सच्चाई से गति मान होता है।


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