4 जटाशंकर -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म. सा.
जटाशंकर स्कूल में
पढता था।
अध्यापक ने
एक दिन
सभी छात्रों
को अलग
अलग चित्र
बनाने का
आदेश दिया।
सबको अलग
अलग विषय
भी दिये।
सभी अपनी अपनी
कॉपी खोलकर
चित्र बनाने
में जुट
गये। जटाशंकर
को बैठी
गाय का
चित्र बनाना
था। पर
उसे चित्र
बनाते समय
ध्यान न
रहा। बैठी
गाय के
स्थान पर
खडी गाय
का चित्र
बना डाला।
जब अध्यापक ने
उसकी काँपी
देखी तो
वह चिल्ला
उठा। यह
क्या किया
तूने? मैंने
क्या कहा
था?
जटाशंकर ने जबाव
दिया सर!
जैसा आपने
कहा था
वैसा ही
चित्र बनाया
है। अध्यापक
ने डंडा
हाथ में
लेकर उसे
दिखाते हुए
कहा मूर्ख!
मैंने बैठी
गाय का
चित्र बनाने
को कहा
था और
तूने खड़ी
गाय का
चित्र बना
दिया।
जटाशंकर पल भर
विचार में
पड गया।
उसने सोचा
गलती तो
हो गई।
अब क्या
करूँ कि
मार न
पड़े।
वह धीरे से
विनय भरे
शब्दों में
बोला-सर!
मैंने तो
बैठी गाय
का ही
चित्र बनाया
था। पर
लगता है-
आपके हाथ
में डंडा
देखकर डर
के मारे
खडी हो
गई है।
मास्टर समेत सभी
खिलखिलाकर हँस पडे।
उचित समय पर
उचित शब्दों
का प्रयोग
वातावरण में
परिवर्तन ला
देता है।
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