जटाशंकर परेशान था। उसकी स्मरण
शक्ति बहुत कमजोर थी। इस कारण रोज उसे फटकार सुननी पडती थी। जो वस्तुऐं मंगवाई जाती,
वह तो लाता नहीं था। और कई बार तो ऐसा होता था कि एक ही वस्तु को बार बार ले आता था।
वह यह भूल जाता था कि यह तो मैं पहले ला चुका हूँ।
अपनी समस्या से वह बहुत परेशान
था। आखिर वह थक हार कर एक बार एक सुप्रसिद्ध डॉक्टर के पास पहुँचा।
उसने निवेदन भरे स्वरों में कहा- डॉक्टर साहब! मेरी समस्या शारीरिक नहीं है। मैं बहुत जल्दी हर बात भूल जाता हूँ। याद
नहीं रहता। आप कोई ऐसी दवा दीजिये ताकि मेरी स्मरण शक्ति तीव्र हो जाय।
डॉक्टर ने कहा- चिंता न करो।
अभी अभी पन्द्रह दिन पहले ही अमेरिका में जोरदार शोध हुई है, एक ताकतवर दवा तैयार
हुई है। वह दवा एक सप्ताह में केवल एक बार खानी होगी। उस दवा का असर एक सप्ताह तक कायम
रहेगा। स्मरण शक्ति जोरदार हो जायेगी। बिल्कुल अनुभव की गई दवा है।
मेरे पास तीन दिन पहले ही वह
दवा आई है।
जटाशंकर बहुत प्रसन्न हुआ। उसने
कहा- डॉक्टर साहब! पैसा कितना भी लगे, चिन्ता नहीं, पर दवा कारगर होनी चाहिये।
डॉक्टर ने कहा- एक काम करो,
कल इसी समय आ जाना। मैं तुम्हें दवा दे दूंगा।
जटाशंकर ने कहा- डॉक्टर साहब!
कल आना भूल गया तो! इसलिये एक काम करो। पैसे मैं साथ लेकर आया हूँ। वह दवा आप आज ही
मुझे दे दीजिये।
डाँक्टर ने कहा- नहीं! आज मैं
तुम्हें नहीं दे सकता।
‘क्यों!
आज क्यों नहीं!’ जटाशंकर ने तर्क किया।
डॉक्टर ने कहा- नहीं! और कोई
बात नहीं है। असल में वह दवा रखकर मैं जरा भूल गया हूँ। मुझे याद नहीं है कि वह दवा
कहाँ रखी है? इसलिये मैं कल तुम्हें बुला रहा हूँ। ढूंढकर कल दवा तैयार रखूंगा।
यह सुनते ही जटाशंकर ने रवाना
होने में ही लाभ समझा।
जो डॉक्टर खुद अपना इलाज न कर
सका, वह दूसरों का इलाज क्या करेगा? इस दुनिया में हम दूसरों का ही तो इलाज करते हैं।
अपने बारे में तो सोचने का वक्त ही नहीं मिलता।