जटाशंकर
0 पू. उपाध्याय
मणिप्रभसागरजी म.
जटाशंकर चतुर
आदमी था। बोली ऐसी थी कि भलभले आदमी को अपने जाल में फँसा देता था। वह दो प्रकार
की बादाम लेकर व्यापार कर रहा था। एक खुली चौकी पर कपडा बिछा कर उसमें बादाम के दो
ढेर लगाकर लोगों को खरीदने के लिये आह्वान कर रहा था।
घटाशंकर का वहाँ
आना हुआ। पूछा- बादाम के भाव क्या!
जटाशंकर ने गहरी
नजरों से उसे देखा और कहा- मेरे पास दो क्वालिटी की बादाम है। यह बी ग्रेड की
बादाम है, इसका भाव एक हजार रूपये
किलो है। दूसरी ए ग्रेड की है, इसका भाव 20 हजार रूपये किलो है।
बीस हजार रूपये!
सुना तो घटाशंकर हक्का बक्का रह गया।
कहा उसने- ऐसी
क्या विशेषता है, इसमेें!
जटाशंकर बोला- 20 हजार रूपये वाली बादाम खाते ही दिमाग
कम्प्युटर से भी तेज दौडता है। लो! देखो- 10 बादाम बी ग्रेड की खाओ! फिर मैं सवाल करता हूँ, जवाब देना। यों कहकर उसके हाथ 10 बादाम पकडाई।
वह बादाम खाने के
बाद बोला- पूछो, क्या सवाल है।
जटाशंकर ने पूछा-
बताओ, एक किलो चावल में चावल के
दाने कितने!
घटाशंकर माथा
खुजाने लगा। चावल तो कभी गिने ही नहीं। गिनना मुमकिन भी नहीं।
जटाशंकर ने कहा-
लो अब ए ग्रेड की 10 बादाम खाओ,
फिर मैं सवाल पूछता हूँ।
10 बादाम खाने के
बाद पूछा- बताओ, पांच दर्जन केले
में केले कितने!
घटाशंकर तुरंत
बोला- 60!
जटाशंकर ने कहा-
देखा! ए ग्रेड बादाम का कमाल! खाते ही दिमाग कैसे तेज चलने लगा, तुरंत उत्तर बता दिया। जबकि बी ग्रेड खाने के
बाद जो सवाल पूछा, उसका तुम उत्तर
ही नहीं दे पाये।
घटाशंकर को सचमुच
लगा कि ए ग्रेड की बादाम खाते ही मेरा दिमाग क्या तेज हुआ है! उसने कहा- भैया! ए
ग्रेड की बादाम जल्दी से एक किलो पेक कर दो।
घटाशंकर यह समझ
नहीं पाया कि यह कमाल बादाम का नहीं, प्रश्न का ही था। चावल कौन गिन पायेगा! और केले गिनने में क्या समस्या है!
ऐसे ही यह संसार
जटाशंकर की भांति है, जो हमें छलता है।
जो यथार्थ नहीं दिखाता। हम वैसा नहीं समझ पाते, जैसा होता है। बल्कि वैसा समझते हैं, जैसा समझाया जाता है। और इस कारण हम घटाशंकर की भांति मूर्ख
बन जाते हैं। जो व्यक्ति संसार के स्वरूप को सम्यक् रूप से जान लेता है, वह जीवन में कभी छला नहीं जाता। वह अपने को
अर्थात् अपनी आत्मा को सुरक्षित कर लेता है।
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