जटाशंकर
- पूज्य उपाध्याय श्री मणिप्रभसागरजी म.
जटाशंकर सरकारी अफसर था। था नहीं, पर अपने आपको बहुत ज्यादा बुद्धिमान समझता था। उसके मन मस्तिष्क पर यह सुरूर छाया रहता था कि मुझ से ज्यादा चतुर व्यक्ति इस आँफिस में दूसरा नहीं है। वह पारिवारिक रिश्तेदारी के हिसाब से जल्दी ही प्रगति के पथ पर चढता हुआ अफसर बन गया था।
उसके अण्डर में काम करने वाला घटाशंकर एक बार उसके पास आया और बोला- सर! स्टोर पूरा भर चुका है। फाईलें बहुत जमा हो गई है। चालीस चालीस साल पुरानी फाईलें पडी है। कभी काम नहीं आती, इसलिये इनका निपटारा हो जाना चाहिये।
जटाशंकर कुछ पलों तक विचार करने के बाद बोला- मैं निरीक्षण करता हूँ, बाद में निर्णय लिया जायेगा।
थोडी देर बाद जटाशंकर उस कक्ष में पहुँचा। फाईलों पर धूल जमी हुई थी। दो चार फाईलों को देखने के बाद लगा कि इनका कोई काम नहीं है।
वह आँफिस में गया और घटाशंकर को बोला- एक काम करो! ये फाईलें किसी काम की नहीं है। व्यर्थ जगह रोक रही है। नई फाईलों को रखने के लिये स्थान नहीं है। अत: इन समस्त फाईलों को नष्ट कर दो। पर हाँ! एक काम कर लेना। इन्हें नष्ट करने से पहले इन सबकी फोटोकाँपी कर रख लेना। कभी काम आ सकती है।
घटाशंकर का मुँह खुला का खुला रह गया। सारा स्टाँफ जटाशंकर की मूर्खता पर हँसने लगा। जब फाईलों को रखने के लिये जगह नहीं है तो फोटोकाँपी वाली फाईलों को रखने के लिये जगह कहाँ से आयेगी! फिर जब फोटोकाँपी रखनी है तो फाईलों को नष्ट करने की क्या जरूरत है!
पूर्व कर्म का बंधन फाईलें है और उनके उदय में बंधने वाले कर्म फोटोकाँपी! हमें कर्म नष्ट करना है। पर साथ साथ यह भी ध्यान रखना है कि उनकी फोटोकाँपी न हो पाये।
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