29 जटाशंकर -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म. सा.
जटाशंकर की पत्नी ने अपने पति
से कहा- लगता है! हमारा नौकर चोर है। हमें सावधान रहना होगा। जटाशंकर ने कहा- नौकर
यदि चोर है तो उसकी छुट्टी कर देनी चाहिये।
ऐसे चोर का हमारे घर क्या काम?
लगता है, इसके माता पिता ने इसे सुसंस्कार नहीं दिये।
लेकिन तुमने कैसे जाना कि वह
चोर है। क्या चुराया उसने!
पत्नी ने कहा- अरे! अपने पाँच
दिन पहले अपने मित्र द्वारा आयोजित भोजन समारंभ में गये थे न! वहाँ से दो चांदी के
चम्मच अपन उठा कर नहीं लाये थे। वे चम्मच आज मिल नहीं रहे हैं। हो न हो! इसी ने चुराये
होंगे। कैसा खराब आदमी है, चोरी करता है!
खुद ने चम्मच चोरी करके अपने
झोले में डाले थे। अपनी यह चोर वृत्ति आनंद दे रही थी। कोई और चोरी करता है, दर्द होता
है।
जीवन में हम इसी तरह का मुखौटा
लगा कर जीते हैं। दूसरों की छोटी-सी विकृति पर बडा उपदेश देना बहुत आसान है। अपनी बडी
विकृति पर दो आँसू बहाने बहुत मुश्किल है।
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